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विविध शरीराङ्गों पर व्रणशोथ का प्रभाव
मिलता है जब मुख, दांत, तुण्डिका ग्रन्थियाँ, वायु कोटरादि में उपसर्ग हो; आमाशय व्रण या विस्तीर्ण सिरा व्रण का अपवहन करने वाली ग्रन्थियों में भी यह देखा जा सकता है, कर्कटार्बुद के क्षेत्रों का अपवहन करने वाली ग्रन्थियों में विस्थानान्तर ( metastasis) के पूर्व देखा जाता है; तथा तीव्र लसग्रन्थिपाक के परिणामस्वरूप भी ग्रन्थियों में मिलता है ।
साधारण जीर्ण लसीकाग्रन्थिपाक में ग्रन्थियां मोटी होने के साथ ही साथ कठिन और एक दूसरे से सटी हुई हो जाती हैं । सटने का कारण परिलसग्रन्थिपाक होता है । अण्वीक्ष से देखने पर तान्तव संधार (fibrous stroma) फूल जाता है तथा प्रावर व्रणशोथात्मक तन्तूत्कर्ष के कारण स्थूल हो जाता है । उत्पादक स्यूनिकाओं की संख्या में भी पर्याप्त वृद्धि मिलती है । जालिकीय कोशाओं के केन्द्रीय क्षेत्र भी फूल जाते हैं. उनमें प्रगुणन तीव्र हो जाता है । शोणावकाशों के अन्तश्छदीय कोशाओं में परमचय होने से कितने ही प्रोतिकोशा ( histiocytes ) स्वतन्त्र हो जाते हैं । यद्यपि इन ग्रन्थियों में परमचय (hyperplasia ) इतना होता है फिर भी उनका आकार स्वाभाविक ही रहता है आगे चलकर तन्तूस्कर्ष के कारण आकार में कुछ विषमता देखी जाती है ।
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जीर्ण सग्रन्थिपाक का एक उदाहरण अपची है । इसका वर्णन जो शास्त्रकारों ने दिया है उसे पढ़कर सन्देह के लिए स्थान नहीं रहता। यही नहीं जीर्ण लसग्रन्थिपाक को अपची नाम से भी कहा जा सकता है । वास्तव में अपची साधारण एवं विशिष्ट: दोनों प्रकार के जीर्ण सग्रन्थिपाक के लिए व्यवहृत होने वाला शब्द है । हम अपची का सुश्रुतोक्त उद्धरण नीचे दे रहे हैं:
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हुन्वस्थिकक्षाक्षकबाहुसन्धिमन्यागलेषूपचितं तु मेदः ।
ग्रन्थि स्थिरं वृत्तमथायतं वा स्निग्धं कफश्चाल्परुजं करोति ॥ तं ग्रन्थिभिस्त्वामलकास्थिमात्रैर्मत्स्याण्डजालप्रतिमैस्तथाऽन्यैः । अनन्यवर्णैरुपचीयमानं चयप्रकर्षादपचीं वदन्ति ॥
कण्डूयुतास्तेऽल्परुजः प्रभिन्नाः स्रवन्ति नश्यन्ति भवन्ति चान्ये ।
मैदःकफाभ्यां खलु रोग एष सुदुस्तरी वर्षगणानुबन्धी || (सु. सं. नि. स्था. ११ )
विशिष्ट जीर्ण सग्रन्थिपाक यक्ष्मा तथा फिरंग के कारण होते हैं । अपची साधारण की अपेक्षा विशिष्ट में अधिक आती है अतः इसका विस्तृत विचार हम यक्ष्माजन्य जीर्ण सग्रन्थिपाक के वर्णन के साथ यथास्थान करेंगे ।
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(७) श्वसनसंस्थान पर व्रणशोथ का परिणाम
इस प्रसङ्ग में हम नासा, गला या ग्रसनी ( pharynx ), स्वरयन्त्र, कण्ठनाली, श्वासनलिका, फुफ्फुस एवं फुफ्फुसच्छद के पार्कों का वर्णन उपस्थित करेंगे । विकृत शारीर के ज्ञान के पूर्व यदि थोड़ा प्रकृत शारीर का मनन कर लिया जावे तो विषय को समझने में बहुत सी कठिनाइयाँ तिरोहित हो जावेंगी ।