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विकृतिविज्ञान
पर यह शल्काधिच्छदीय होती है । कूट स्वरतन्त्री और स्वरतन्त्री दोनों के बीच में एक एक कोटर ( sinus ) होता है । स्वरयन्त्र की श्लेष्मलकला बड़ी हृष ( sensitive ) होती है । यह हृषता कण्ठनाडी तक में मिलती हैं पर जब वह द्विविभक्त हो जाती है तो पूर्णतः समाप्त हो जाती है ।
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स्वरयन्त्र के नीचे कृकाटिका कास्थि से नीचे कण्ठनाडी (trachea ) प्रारम्भ होती है यह ४ - ४३" लम्बी कास्थि के बने छल्लों के मिलने से बनती है । ये छल्ले १५ से २० तक होते हैं पीछे की ओर ये घोड़े की नाल की तरह खाली होते हैं जिसे तन्तु प्रत्यस्थ ऊति से पूरा किया जाता है । पीछे की ओर अनैच्छिक पेशी तन्तु चिपके हुए रहते हैं वे कण्ठनाडी के मुख को छोटा किए रहते हैं । कण्ठनाडी में लाभ श्लेष्मकला बिछी रहती है जिसमें अधिच्छदीय कोशा पक्ष्मल एवं स्तम्भाकार ( columnar ) होते हैं । पच्मों की दिशा ऊर्ध्वगामी होती है ।
कण्ठनाडी के समान ही श्वासनालें ( bronchi ) होती हैं ।
अब हम आगे श्वसनसंस्थान पर व्रणशोथ का जो परिणाम होता है उसे प्रकट करेंगे । प्रतिश्याय अथवा नासा के व्रणशोथ ( Rhinitis )
तीव्र ( acute ), सपूय ( purulent ), जीर्ण परमचयिक ( chronic hypertrophic ) तथा जीर्ण अचयिक ( chronic atrophic ) इस प्रकार नासा के व्रणशोथ के ४ प्रकार शल्यज्ञों ने यथास्थान लिखे हैं ।
आयुर्वेदीय शालाक्यज्ञों ने नासा के कई व्रणशोथों का वर्णन किया है । सर्वप्रथम उन्होंने नासा के नासालिन्द क्षेत्र के पाक का वर्णन किया है । यहाँ पर उन्होंने बतलाया है :
घ्राणाश्रितं पित्तमरूंषि कुर्यात् यस्मिन्विकारे बलवांश्च पाकः । तं नासिकापाकमिति व्यवस्येद् विक्लेदकोथावपि यत्र दृष्टौ ॥
(सु. उ. त. अ. २२ )
नासिकास्थ पित्त नासालिन्द प्रदेश में सर्वप्रथम अरुंषिकाएँ ( nasal furunculosis ) उत्पन्न कर देता है जिसके परिणामस्वरूप पाक बलवान हो जाता है अर्थात् वहां अत्यधिक वेदना होती है सितकोशाओं का एकत्रण बढ़ जाता है अधिरक्तता हो जाती है जिससे आर्द्रता तथा पूतिभाव भी बढ़ने लगता है । इस अवस्था को नासापाक कहा जाता है । नासिका के विविध पाकों के लिए आयुर्वेद ने विविध नामों का प्रयोग किया है | नासापाक या नासिकापाक का स्पष्ट अर्थ नासालिन्द या बहिर्नासिका पाक ( inflammation of the vestibule of the nose ) है।
जिसे हम सर्दी जुकाम ( common cold ) नाम देते हैं उसका आयुर्वेदीय नाम प्रतिश्याय या तीव्र नासाकलापाक ( acute rhinitis ) है | तीव्र नासाकलापाक नासाकला में रक्त की अधिकता हो जाती है जिसके कारण श्लेष्मल कला की ग्रन्थियों की क्रिया बढ़ जाती है और बहुत तरल स्राव नासा से होने लगता है। नासा -
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