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सूत्रस्थान - अं० ३.
खाज और पामानाशक लेप. । कुष्ठामृतासङ्गकटंकटेरी काशीशकाम्पिल्लक रोधमुस्ताः । सौगन्धिकंसर्जरसोविडङ्गमनः शिलालेकरवीरकत्वक् ॥ ८ ॥ तैलाक्तगात्रस्य कृतानि चूर्णान्येतानिदद्यादवचूर्णनार्थम्। ददुः सकण्डुः किटिभानिपामाविचर्चिकाचैव तथैतिशान्तिम् ॥९ ॥ कूठ, गिलोय, तुत्य, दोनों हलदी, कसीस, कमीला, नागरमोथा, लोध, गंधक, सल, वायबिडंग, मनसिल, हरिताल, कनेर की छाल, इन सबके चूर्णको सरसोंके में पकाकर देहपर मलनेसे दाद, खाज, किटिभ, पामा, विवचिका यह सब नष्ट होते हैं ॥ ८ ॥ ९ ॥
कुष्ट आदि रोगोंपर अनेक लेप ।
मनःशिलालेमरिचानितैलमार्कम्पयः कुष्ठहरः प्रदेहः । तुल्यं विडङ्गमरिचानिकुष्ठं लोधञ्चतद्वत्समनःशिलंस्यात् ॥ १० ॥ 'रसाञ्जनं सप्रपन्नाडबीजंयुक्तः कपित्थस्यरसेनलेपः । करञ्जवी - जैडगज सकुष्ठंगो मूत्रपिष्टश्चपरःप्रदेहः ॥ ११ ॥
मनसिल, हरिताल, कालीमिर्च, तेल, आकका दूध इन सबको एकजीव कर लेप करने से शरीरपरका कुष्ठ नष्ट होता है । ऐसे ही बिडंग, मिर्च, कूठ, लोध, मनसिल, इन सबको बराबर ले चूर्णकर तेलके योगसे लेप मालिस करनेसे कुष्ठ दूर होता है ॥ १० ॥ रसौत, पनवाडके बीज, कूठ इनको कैथके रसमें मिला लेपकरनेसे कुष्ट दूर होता है | अथवा - करंजुवेके वीज, पनवाडके बीज, कूठ, इनको गोमूत्र में पीसकर मालिस करने से कुष्ठ नष्ट होता है ॥ ११ ॥
उभे हरिद्रेकुटजस्यबीजं करञ्जबीजं सुमनः प्रवालान् । त्वचंसचव्यांहयमारकञ्चलेपंतिलक्षारयुतंविदध्यात् ॥ १२ ॥
अथवा - दोनों हलदी, इंद्रजौ, करंजुवे के बीज, चमेलीकी कोंपलें, कनेरकी छाल और उसके भीतर का सार, तिलोंका खार इन सबका लेप कुष्ठको नष्ट करता है ॥ १२ ॥ मनःशिलात्वक्कुटजात्सकुष्टः सलोमशः सैडगंजः करञ्जः । यन्थिश्च भौर्जः करवीरमूलं चूर्णानि साध्यानितुषोदकेन ॥ १३ ॥ पलाशनिर्दाहरसेनचापिकर्षोद्धृतान्याढकसम्मितेन दिवप्रलेपप्रवदतिलेपमेतत्परंकुष्ठनिषूदनाय ॥ १४ ॥