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पडकमकमलुभाणजवपाणिभरण्जललिपश्वसविण्यपणमवरणाकरिणिमया खुश्वा दारसण जायन्यनमससियासियहिं अहिरावणलिपलिहिंविदासियोहिणवश्वपापवियना
देववाहभरिनसमा गतस्ति।
लालगायश्वममुणियरणियससखाणंकसमामाणीससशणखणख्याणपतिहिंसाधना सिक्किमणि महासिपियवासर्विमास लिएसासयसुख पावश्मएकाधिनतलोकहोसास।।१३
वेग से झरनों के जल को लाता है और प्रभु के चरण-कमलों का प्रक्षालन करता है। हाथियों के संघर्षण से गिरे हुए चन्दनरस से जो प्रणय से विनयपूर्वक जैसे लीपता है। जो अपनी सित-असित अभिनव कमलरूपी आँखों से जैसे उनका रूप देखता है, नाचते हुए मयूरों से युक्त वह जैसे नाचता है, जिसमें गुनगुनाते हुए भ्रमर हैं, जैसे
गाता है। मानो वह कुसुमों के आमोद से निश्वास लेता है, मानो वह रत्नरूपी दाँतों की पंक्तियों से हँसता है।
घत्ता-चम्पक की वास से मिश्रित सुन्दर मन्दराचल शिखर पर स्थित जिन ऐसे मालूम हुए मानो शाश्वत सुखवाला मोक्ष त्रिलोक के ऊपर स्थित हो॥१३॥
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