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कोक्करण कलखो दिष्मकमाथि चरण हरिणसंछष्ण सीममग्न ॥ ३॥ जो कलवर्कसुअवमग्नमास
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सहसरामंथमा गोमहिसो दडत घयददिय वानिमा त तर्पथिय समूहो | जोरुंदा
चंद किरणादिराम सामारमंतगोवालगो वियागी मगेटा रस नस विमा समसुण्डा णिहित्रणी सासत्ता ववि
छू-छू करने के कलरव के प्रति कान देने के कारण, स्थिर चरणवाले हरिणों से आच्छन्न हैं ॥ ३ ॥ जहाँ पर धान्य, कंगु जौ, मूंग और उड़द से सन्तुष्ट और मन्द मन्द जुगाली करते हुए गौ-महिष-समूह से दुहे जाते हुए दूध-दही और भी की बापिकाओं में पथिकजन स्नान कर रहे हैं ॥ ४ ॥
जहाँ के गोठ पूर्णचन्द्र की किरणों से सुन्दर निशा में क्रीड़ा करते हुए गोपाल और गोपालनियों के द्वारा गाये गये गेयरस के वश से दुःखी वधुओं के द्वारा मुक्त निःश्वासों के सन्ताप से नष्ट होती हुई गोष्ठियों से शोभित हैं ॥ ५ ॥
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