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घ्इ।। २२शाळ || महापुराणेति सहिमा घरिसगुणालं का महाकश्वकमतविर
महालब्रतरवाणुमणिया महा णकरणणामपंचवीसमोपरि।। ॥घ्नध्वलताश्रयाणामचलस्ि नास्त्रिलोके सरतगुणानामरीण) तदोवसुम रहेका बजिइ जं बिखणेसं पज्ञशाला जर थुंकोद श्राऊंकमा लेवणं मंच एंडक्षणापथं उन्दर्य लोय
क। यज्ञवाह वादेत तक्चर ट्रेन समतोला। |ठ|| ध्रुवके तिकारिणा मुहर्तमती गणनेव चला का मसोहरसवसहो चित किंपि मुणे तंतं प्रयल ढवत्र हालिंगणं माल मालि चारुसेजायलं चा वरोहा रिमा उप्पधाराहरे, रान कंवलो छन
राधेधरं सर्व पिसं अयं सा ययालम्भितरिया चंदचदपाया पिया नेह त्रियादा तारहारावली दाहिणो मंथरोमा रुठे सायलो करक का ला लिन पल वो को मलो वखरा मंडवो पोममा सरो वा योग दोलणाली एन्सायरो । यह यह दहिंसा यलपाणि २४१ यं उन्हयाल मितेणेरिसमार्णिय लियासा कयं वेोहधूजा र मन्त्रमाकरवं दस केयारी नार
इस प्रकार त्रेसठ महापुरुषों के गुण अलंकारों से युक्त महापुराण में महाकवि पुष्पदन्त द्वारा विरचित एवं महाभव्य भरत द्वारा अनुमत महाकाव्य का वज्रबाहु वज्रदन्त तपश्चरण नाम का पचीसवाँ परिच्छेद समाप्त हुआ ।। २५ ।।
सन्धि २६
कामभोग और सुखरस से वशीभूत उस श्रीमती का क्या वर्णन किया जाये! मन में वह जो सोचती है वह सब एक क्षण में उसे प्राप्त हो जाता है।
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यक्ष कर्दम, प्रिय का दृढ़ आलिंगन, मालतीमाला, केशर का लेप, ऊँचा मंच, सुन्दर शय्यातल, स्थूल उन्नत ऊष्मा सहित स्तनों का भाग उष्ण भोजन घी की धारा से सराबोर, लाल कम्बल, और रन्ध्रों से आच्छादित घर - पूर्व पुण्य के संयोग से उसे सब कुछ का संयोग प्राप्त हो गया - शीतकाल में उसने इस प्रकार भोग किया। चन्दन, चन्द्रकिरणें, स्नेहमयी प्रिया, जुही की माला, स्वच्छ हारावली, दक्षिण मन्द शीतल पवन । वृक्ष की क्रीड़ा से आन्दोलित कोमल पल्लव लतामण्डप, कमलयुक्त सरोवर, पंखों के आन्दोलन से व्याप्त जलकण। खूब जमा हुआ दही ठण्डा जल-उष्णकाल को उसने इस प्रकार बिताया। खिले हुए दिशाकदम्ब समूह की धूल से रत, मस्त मयूरवृन्द का केका शब्द,
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