Book Title: Adi Purana
Author(s): Pushpadant, 
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 637
________________ लिदिवलहमदिाधुता वळायधिश्वरंगुठलियामातोतिम्मश्वंञ्चलियाउन विरहवेल हलाकदा देवदंदणअहिणवलिजिहाघराश्य मुहनिम्नमवाययामङखितहता पिनयमायण काविद्यापमुमरिससहोमहियापछिबिसयमयणेणविमहियावालवयसियापनाव मण्डि मशवितासहिउसमणिन मश्चालिसासिसियरादि मलावछकमिसऋणाड़िी चामायखरवरहारदमणहा मयणवनसामतिणिरमणहालाहाजदासंग्रहमकावसदारमय पदयानिहितविज्ञाहरि अणणहापझ्यहोयाजखाजाजोहिहासिम्यहमदया अाणितपछिवितरउकंवल वियलिनतदेतरुणिहिमणहिहिया मूहबवज्ञविग्यापाडि याचितावासाविसमाडिया कंकणयविसवयममाडकरुजावश्म वयसीमनात तिरसपिम्पपरसाउद्दामकामकालपारस्ए सहिदकद्रोहीणएमग्निसमर्पयरमा विद्या लिशिया बहराजाणिवडिजवखारेगमपञपिटनरवरनियर उनम्पत्तियतिगा यतनाहितरीनयरिनए हिवजनहि पियवलमसवाहणवदहो पयहिपडिययणवालसिल दहा सजणणयणाभदनपलमुक्किउसोभारामबहारठातेणपउन्नमसिमुहमासकासन्नमदि प्रिय सखी है। उस युवती के मन में वही उसका धैर्यबल (मन) होगा? हे सुभग! तुम्हारे वियोग में वह पीड़ित है। और घत्ता-तुम्हारी अंगूठी देखकर वह अश्रुजल से अपनी चोली गीली कर रही है। वह कोमल विरह से बेचारी तुम्हारी चिन्ता-वियोग में पीड़ित है। उसने कर्णफूल छोड़ दिये हैं। और मेरी सखी का जीना कठिन उसी प्रकार जल रही है जिस प्रकार दावानल से नयी लता जल जाती है ॥२३॥ २४ घत्ता-प्रेम के वशीभूत होकर तथा उत्कट कामक्रीड़ा के रस से भरी हुई उस दीन ने वह तुम्हारा कम्बल घर जाने पर जिसके मुख से वाणी निकल रही है, ऐसी उसकी माँ ने मुझे से कहा-कोई आदर्श पुरुष माँगा और मैंने भी अपने हाथ से उस प्रावरण का आलिंगन किया॥२४॥ है, उसकी 'मुद्रा' देखकर लड़की काम से पीड़ित हो उठी है। उस बालसखी ने कुछ भी विचार नहीं किया और उसने मुझे अपना हृदय बता दिया। मैंने उसे धीरज बंधाया कि चन्द्रकिरणों के समान शोभावाले प्रिय तुम यहाँ पर अशनिवेग विद्याधर द्वारा लाये गये हो-नरपति समूह ने ऐसा मुझ से कहा। उस पर विश्वास से तुम्हारा मिलाप करा दूंगी। उसी देश में चामीकर (स्वर्णपुर में ) मदनवेगा' स्त्री से रमण करनेवाले हरिदमन न करते हुए 'मैं' वहाँ गयी। हे राजन् ! प्रजारूपी कमलों का सम्बोधन विकसित करने के लिए चन्द्रमा के की 'मदनावती' नाम की विद्याधरी सुन्दरी लड़की थी। पिता के पूछने पर मुनियों ने कहा था कि जो रत्नों समान गुणपाल जिनों के पैरों पर 'मैं' पड़ी थी। तथा सज्जन के नेत्रों को आनन्द देनेवाले तुम्हारे आगमन से उज्ज्वल हिमदल की कान्ति को आहत करनेवाले लाये गये तुम्हारे कम्बल को देखकर विगलित हो जायेगा को उसने पछा, उन्होंने कहा कि बाल राजा Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org

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