Book Title: Adi Purana
Author(s): Pushpadant, 
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 708
________________ का त्याग कर दिया था। सन्देह का परित्याग कर परमशिवपद को प्राप्त कर लिया था। उन्होंने हिमवान् के शिवपुराण दक्षिण भाग को भरत के लिए दिया था। उसी भरत के नाम से विद्वान् इसे भारतवर्ष कहते हैं। नाभेः पुत्रश्च वृषभो वृषभात् भरतोऽभवत्। तस्य नाम्ना त्विदं वर्ष भारतं चेति कीयते ॥ (३७.५७) और वृषभ के पुत्र 'भरत' हुए। उनके नाम से इस वर्ष (देश) को 'भारतवर्ष' नाभि के पुत्र 'वृषभ कहते हैं। सूरसागर वायुपुराण नाभिस्त्वजनयत्पुत्रं मरुदेव्या महाद्युतिः। ऋषभं पार्थिवश्रेष्ठं सर्वक्षत्रस्य पूर्वजम्॥४०॥ ऋषभाद् भरतो जज्ञे वीरः पुत्रशताग्रजः। सोऽभिषिच्याथ भरतं पुत्रं प्राव्राज्यमास्थितः॥४१॥ हिमाल दक्षिणं वर्ष भरताय न्यवेदयत्। तस्माद् भारतं वर्ष तस्य नाना विदुर्बुधाः ॥४२॥ (पूर्वार्ध, अध्याय ३३) - नाभि के मरुदेवी से महाद्युतिवान 'ऋषभ' नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। वह 'ऋषभ' नृपतियों में उत्तम था और सम्पूर्ण क्षत्रियों द्वारा पूजित था। ऋषभ से 'भरत' की उत्पत्ति हुई जो सौ पुत्रों से अग्रज था। उस 'भरत' को राजपद पर अभिषिक्त कर ऋषभ स्वयं प्रव्रज्या में स्थित हो गये। उन्होंने हिमवान् के दक्षिण भाग को भरत के लिए दिया था। उसी भरत के नाम से विद्वान इसे 'भारतवर्ष' कहते हैं। बहुरो रिषभ बडे जब भये, नाभि राज दे वन को गये। रिषभ-राज परजा सुख पायो, जस ताको सब जग में छायो। रिषभदेव जब बन को गये, नवसुत नवौ-खण्ड-नृप भये। भरत सो भरत-खण्ड को राव, करे सदा ही धर्म अरु न्याव॥ (पंचम स्कन्ध, पृ. १५०-५१) भागवत तेषां वै भरतो ज्येष्ठो नारायण-परायणः। विख्यातं वर्षमेतद् यन्नाम्ना भारतमद्भुतम्॥ (११.२.१७) वराहपुराण नारदपुराण आसीत् पुरा मुनिश्रेष्ठः भरतो नाम भूपतिः। नाभिर्मरुदेव्यां पुत्रमजनयत् ऋषभनामानं तस्य भरतः आर्षभो यस्य नाम्नेदं भारतं खण्डमुच्यते॥5॥ पुत्रश्च तावदग्रजः तस्य भरतस्य पिता ऋषभः स राजा प्राप्तराज्यस्तु पितृपैतामहं क्रमात्। हेमाद्रेर्दक्षिणं वर्ष महद् भारतं नाम शशास। (अध्याय ७४) पालयामास धर्मेण पितृवद्रंजयन् प्रजाः॥6॥ (पूर्वखण्ड, अध्याय ४८) कूर्मपुराण हिमाह्वयं तु यद्वर्षं नाभेरासीन्महात्मनः। - पूर्व समय में मुनियों में श्रेष्ठ 'भरत' नाम के राजा थे। वे ऋषभदेव के पुत्र थे, उन्हीं के नाम से यह तस्यर्षभोऽभवत्पुत्रो मरुदेव्या महाद्युतिः ॥३७॥ देश' भारतवर्ष' कहा जाता है। उस राजा भरत ने राज्य प्राप्तकर अपने पिता-पितामह की तरह से ही धर्मपूर्वक ऋषभाद् भरतो जज्ञे वीरः पुत्रः शताग्रजः । प्रजा का पालन-पोषण किया था। सोऽभिषिच्यर्षभः पुत्रं भरतं पृथिवीपतिः ॥३८॥ (अध्याय ४१) श्रीमद्भागवत येषां खलु महायोगी भरतो ज्येष्ठः श्रेष्ठगुणा आसीत्। विष्णुपुराण येनेदं वर्ष भारतमिति न ते स्वस्ति युगावस्था क्षेत्रेष्वष्टसु सर्वदा। व्यपदिशन्ति॥ हिमाह्वयं तु वै वर्ष नाभेरासीन्महात्मनः ॥२७॥ तस्यर्षभोऽभवत्पुत्रो मरुदेव्यां महाद्युतिः। - श्रेष्ठ गुणों के आश्रयभूत, महायोगी भरत अपने सौ भाइयों में श्रेष्ठ थे, उन्हीं के नाम पर इस देश को ऋषभाद्भरतो जज्ञे ज्येष्ठः पुत्रशतस्य सः॥२८॥ 'भारतवर्ष' कहते हैं। (द्वितीयांश, अध्याय १) उपर्युक्त उद्धरण 'आदिपुराण', आचार्य जिनसेन, भाग-१, प्रस्तावना, पृ. २७, प्रकाशक - भारतीय ज्ञानपीठ, चतुर्थ संस्करण, १९९३ से उद्धृत हैं। Jain Education International For Private & Personal use only www.jaineK89og

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