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जैन परम्परा/साहित्य से उद्धृत उद्धरण
वसुदेवहिण्डी
इहं सुरासुरिंदविंदवंदिय-चलणारविंदो उसभो नाम पढ़मो राया जगप्पियामहो आसी। तस्य पुत्तसयं। दुवे पहाणा भरहो बाहुबली य। उसभसिरी पुत्तसयस्स पुरसयं च दाऊण पाइयो। तत्थ भरहो भरहवासचूड़ामणि, तस्सेव णामेण इहं भारतवासं ति पवुच्चंति।
(प्रथम खण्ड पृ. १८६) - यहाँ जगत्पिता ऋषभदेव प्रथम राजा हुए। सुर और असुर दोनों ही के इन्द्र उनके चरण-कमलों की वन्दना करते थे। उनके (ऋषभदेव के) सौ पुत्र थे। उनमें दो प्रमुख थे - भरत और बाहुबली। ऋषभदेव शतपुत्र-ज्येष्ठ को राजश्री सौंपकर प्रव्रजित हो गये। भारतवर्ष का चूड़ामणि (शिरोमुकुट) भरत हुआ। उसी के नाम से इस देश को 'भारतवर्ष' ऐसा कहते हैं।
- इसके पश्चात् भगवान् ऋषभनाथ ने अपने ज्येष्ठ पुत्र का साम्राज्याभिषेक किया तथा 'भरत से शासित प्रदेश भारतवर्ष हो' - ऐसी घोषणा की। 'भारतवर्ष' को उन्होंने सनाथ किया।
प्रमोदभरतः प्रेमनिर्भरा बन्धुता तदा। तमाह्वत भरतं भावि समस्त भरताधिपम्॥ तन्नाम्ना भारतं वर्षमितिहासीजनास्पदम्। हिमाद्रेरासमुद्राच्च क्षेत्रं चक्रभृतामिदम्॥
(१५.१५८-१५९) - समस्त भरत क्षेत्र के उस भावी अधिपति को आनन्द की अतिशयता से स्नेह करनेवाले बन्धु-समूह ने 'भरत' ऐसा कहकर सम्बोधन दिया पुकारा। उस' भरत' के नाम से हिमालय से समुद्र-पर्यन्त यह चक्रवर्तियों का क्षेत्र 'भारतवर्ष' नाम से लोक में प्रतिष्ठित हुआ।
जम्बूदीवपण्णत्ति
भरहे अइत्थदेवे णहिड्डिए महजुए जावपलि ओवमढिइए परिवसइ । से एएणट्टेणं गोयमा, एवं वुच्चड़ भरहेवासं।
- इस क्षेत्र में एक महर्द्धिक महाद्युतिवंत, पल्योपम स्थितिवाले भरत नाम के देव का वास है। उसके नाम से इस क्षेत्र का नाम भारतवर्ष' प्रसिद्ध हुआ।
मोना
तन्नाम्ना भारतं वर्षमितीहासीजनास्पदम्। हिमाद्रेरासमुद्राच्च क्षेत्रं चक्रभृतामिदम्॥
(६.३२) - उसके नाम से (भरत के नाम से) यह देश 'भारतवर्ष' प्रसिद्ध हुआ - ऐसा इतिहास है। हिमवान् कुलाचल से लेकर लवणसमुद्र तक का यह क्षेत्र 'चक्रवर्तियों का क्षेत्र ' कहलाता है।
महापुराण
ततोऽभिषिच्य साम्राज्ये भरतं सूनुमग्रिमम्। भगवान् भारतं वर्षं तत्सनाथं व्यधादिदम्॥
आचार्य जिनसेन (१७.७६)
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