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इस देश का नाम ' भारत / भारतवर्ष' ऋषभपुत्र 'भरत' के नाम से हुआ है। यह तथ्य निम्न उद्धरणों से स्पष्ट एवं पुष्ट होता है
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जैनेतर/ वैदिक परम्परा से उद्धृत उद्धरण
अग्निपुराण
मार्कण्डेयपुराण
( १०७.१०-११ )
- 'नाभिराजा' से 'मरुदेवी' में 'ऋषभ' का जन्म हुआ। ऋषभ से 'भरत' हुए। ऋषभ ने राज्यश्री' 'भरत' को प्रदानकर संन्यास ले लिया। भरत से इस देश का नाम 'भारतवर्ष' हुआ। भरत के पुत्र का नाम 'सुमति'
था।
ऋषभो मरुदेव्यां च ऋषभाद् भरतोऽभवत् । ऋषभो दत्तश्रीः पुत्रे शाल्यग्रामे हरि गतः । भरताद् भारतं वर्ष भरतात् सुमतिस्त्वभूत् ॥
ब्रह्माण्डपुराण
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आग्नीधसूनोर्नाभेस्तु ऋषभोऽभूत् सुतो द्विजः । ऋषभाद् भरतो जज्ञे वीरः पुत्रशताद् वरः ॥ सोऽभिषिच्यर्षभः पुत्रं महाप्राव्राज्यमास्थितः । तपस्तेपे महाभागः पुलहाश्रम संश्रयः ॥ हिमाहवं दक्षिणं वर्ष भरताय पिता ददौ । तस्मात्तु भारतं वर्षं तस्य नाम्ना महात्मनः ॥
(५०.३९-४२)
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- अग्नीध्र पुत्र नाभि से ऋषभ उत्पन्न हुए, उनसे भरत का जन्म हुआ, जो अपने सौ भाइयों में अग्रज था। ऋषभ ने ज्येष्ठ पुत्र भरत का राज्याभिषेक कर महाप्रव्रज्या ग्रहण की और 'पुलह' आश्रम में उस महाभाग्यशाली ने तप किया। ऋषभ ने भरत को 'हिमवत' नामक दक्षिण- प्रदेश शासन के लिए दिया था, उस महात्मा 'भरत' के नाम से इस देश का नाम 'भारतवर्ष' हुआ।
परिशिष्ट
ऋषभपुत्र भरत से भारत
नाभिस्त्वजनयत् पुत्रं मरुदेव्यां ऋषभं पार्थिवश्रेष्ठं सर्वक्षत्रस्य ऋषभाद् भरतो जज्ञे वीर: सोऽभिषिच्यर्षभः पुत्रं महाप्रव्रज्यया
महाद्युतिम् । पूर्वजम् ॥ ६० ॥
पुत्रशताग्रजः । स्थितः ॥ ६१ ॥
(पूर्व २.१४)
-नाभि ने मरुदेवी से महाद्युतिवान् 'ऋषभ' नाम के पुत्र को जन्म दिया। ऋषभदेव 'पार्थिव श्रेष्ठ' और 'सब क्षत्रियों के पूर्वज' थे। उनके सौ पुत्रों से वीर 'भरत' अग्रज थे। ऋषभ ने उनका राज्याभिषेक कर महाप्रव्रज्या ग्रहण की। उन्होंने भरत को 'हिमवत्' नाम का दक्षिणी भाग राज्य करने के लिए दिया था और वह प्रदेश आगे चलकर भरत के नाम पर ही 'भारतवर्ष' कहलाया ।
स्कन्दपुराण
हिमाहवं दक्षिणं वर्षं भरताय न्यवेदयत् । तस्मात्तु भारतं वर्ष तस्य नाम्ना विदुर्बुधाः ॥ ६२ ॥
नाभेः पुत्रश्च ऋषभः ऋषभाद् भरतोऽभवत् । तस्य नाम्ना त्विदं वर्ष भारतं चेति कीर्त्यते ॥
(खंडस्थ कौमारखंड ३७.५७)
• नाभि का पुत्र ऋषभ, ऋषभ से 'भरत' हुआ। उसी के नाम से यह देश भारत कहा जाता है।
लिंगपुराण
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मरुदेव्यां महामतिः । सर्वक्षत्र - सुपूजितम् ॥
नाभिस्त्वजनयत् पुत्रं ऋषभं पार्थिवश्रेष्ठं ऋषभाद् भरतो जज्ञे वीरः पुत्रशताग्रजः । सोऽभिषिच्याथ ऋषभो भरतं पुत्रवत्सलः ॥ ज्ञानवैराग्यमाश्रित्य जित्वेन्द्रिय-महोरगान् । सर्वात्मनात्मनि स्थाप्य परमात्मानमीश्वरम् ॥ नग्नोजटी निराहारोऽचीवरो ध्वान्तगतो हि सः । निराशस्त्यक्तसंदेहः शैवमाप परं पदम् ॥ हिमाद्रेर्दक्षिणं वर्ष भरताय न्यवेदयत् । तस्मात्तु भारतं वर्षं सत्य नाम्ना विदुर्बुधाः ॥
(४७.१९-२३)
- महामति नाभि को मरुदेवी नाम की धर्मपत्नी से 'ऋषभ' नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। वह ऋषभ (नृपतियों) में उत्तम था और सम्पूर्ण क्षत्रियों द्वारा सुपूजित था। ऋषभ से भरत की उत्पत्ति हुई, जो अपने सौ भ्राताओं में अग्रजन्मा था। पुत्र-वत्सल ऋषभदेव ने भरत को राज्यपद अभिषिक्त किया और स्वयं ज्ञान- - वैराग्य को धारण कर, इन्द्रियरूपी महान् सर्पों को जीत सर्वभाव से ईश्वर परमात्मा को अपनी आत्मा में स्थापित कर तपश्चर्या में लग गये। वे उस समय नग्न थे, जटायुक्त, निराहार, वस्त्ररहित तथा मलिन थे। उन्होंने सब आशाओं
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