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बिडखलाउद्दहणपयंडमलटासिहा रिमविचमालिहरिएवखबर सासणमहकालमुह हरि वादणधमवटपमुहाएपिसापायपिवणमछिदकाताचवश्कसकतणसङ्ककारविलम यानिमाहाणेपरमदिवदहण नवसम्मुखमायनवलहियमा सिचावहिजाणा कमहिनावारिसणमहेंतीयठजिमतं जेणदाणुनसहिनदतिषसजण जतिण इजपाखमहातणर्किकिमाधि महाविधकहानिमाछिएउध्ययह उरायचछिमउसायवर हेवधरकलधवल नामंदरिकविसालबख अहिसिविविषणिक सणावशवगवाहो । झाद रणनिणविनिर्वधविसतिणा आणिदणं विसहापवरविणा सोनुयारूददंडकरुपर
वंतपलोम्लनिवणमरु वदलसुजलानिय नेत्रियहि बिलवंतसिंखयतिमाह नियनाद 'होशीणचयपुलविउ वहिणिहिंधवनलमेलविनास्थलविवपरिचहियकिवहो चरणारदिशा निवर्दियनिवहोराकारुपताहकरेविपसिनदेसहोय हरदिाचता मरिमापविजश मग्नितत्रिपूर्णविनाशपाईदोपवहिउमदम्ममग्नेगम्मर एमचरितुनरिंदहोकिन चरालालकुंजराई तहोयळिसहुसंदणवराह छपवाहासा मियाह वतासंसह संसंताणियाह सोलहसंहससिइई गई प्राणायण्डपजलियराहीघरचा हेटणावे
अप्रसन्न हो उठे। जलाने में प्रचण्ड प्रलयकाल के सूर्य के समान, शत्रु विद्युद्माली और अश्ववेग विद्याधर, वह शत्रुओं को जीतकर और बाँधकर ले आया मानो गरुड़ साँपों को पकड़कर लाया हो। अश्व पर आरूढ़, दुःशासन, दुर्मुख, कालमुख, हरिवाहन और धूमवेग प्रमुख, दुष्टों के लिए भी दुष्ट, ये मेरे दुश्मन हैं (हे हाथ में दण्ड लिये हुए और प्रणाम करते हुए उन मनुष्यों को राजा ने देखा। जिनके नेत्र आँसुओं की प्रचुरता मृगनयनी)। तब प्रिया अपने प्रिय से कहती है-शत्रु के बल और मद का दमन किया जाता है क्या घी से के कारण आर्द्र हैं ऐसी विलाप करती हुई विद्याधर-पुत्रियों ने अपने स्वामी से दीन शब्द कहे, और इस प्रकार दावानल की ज्वाला शान्त होती है? जबतक तलवार और धनुष से न लड़ा जाये, तबतक दुष्ट हृदय क्षमा से बहनों ने अपने बन्धु समूह को मुक्त करा दिया। वे सबके सब बढ़ रही कृषा से युक्त राजा के चरणाग्र में शान्त नहीं होता।
गिर पड़े। राजा ने उन पर करुणा कर और उनका उद्धार कर अपने-अपने देशों में भेज दिया। घत्ता-इस संसार में जीवित रहते हुए जिस महापुरुष ने दीन का उद्धार नहीं किया, जिससे सज्जन पत्ता-महीतल का पालन किया जाये, याचक को दान दिया जाये, जिनेन्द्र के चरणों में प्रणाम किया आनन्द में नहीं हुए और दुर्जन विनाश को प्राप्त नहीं होते, उससे क्या किया जाये (वह किसी काम का नहीं जाये, पैरों में पड़े हुए व्यक्ति को न मारा जाये, और अच्छे मार्ग पर चला जाये, राजाओं का यही चरित्र है)!॥६॥
है।॥ ७॥
महादेवी ने कार्य निश्चित किया। राजा ने भी इस प्रकार उसकी इच्छा की। भोगवती को कुलश्रेष्ठ विशाल बलवाले हरिकेतु नामक भाई का अभिषेक कर पट्ट बाँध दिया। वह विद्याधर राजा सेनापति होकर चला गया।
चौरासी लाख हाथी, तेंतीस हजार श्रेष्ठ रथ, छियानवे हजार रानियाँ, कुल-परम्परा के बत्तीस हजार राजा, आज्ञाकारी और हाथ जोड़े हुए सोलह हजार देव उसे सिद्ध हुए। घर में चौदह रत्न और नौ
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