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कलम निगुणापवं सीमपरामा लाअयायपविनिम्मिनाश
सार तारतमिवचरतलवचरिता।
पसरियकराणिमस्वईतवासह जिणांधणागयह दियाऽपडि
निवशाबंदसुंदकरवाजा मातर्दिलियसणिवखमिता।
तेलियसहिंसकंगयसमवय रण जहिनिवसरिसानिला
यसरणबुडवर इनवेपिपुरात प्यामग्नणतणता विगदात्र
पहिताहिंदादिविजापदि जिणा दसणदणकरमणविरविज
यवजसंताध्यातारणमाण दणिस माणिककरजालमा
थत सरवणविमलजलखाश यामापफुल्लियवलिरवश्या पायालादिणिहलगाई मुणिणाहपुरवस्तरवणाई आदत हजाखलामिवदिह मणिमंडराजहिंजगजाणिवितु वनामसरियाणरिदयकु सरहेसूरुवायउना सकाजाश्सवश्चापियर्चदार सप्परिसमाउरिसा रिज़र किनवश्यान्निमदारइसलेकायम।
३३४ हा कार्यकत्तासाला दिपरिसहराणाविमिजण कहियरिसकिंमरिसविधरिणिहिसामयाह ।
सन्धि ३७ राजा जयकुमार ने अनागत (आगामी) तेईस तीर्थंकरों की ऐसी रत्लनिर्मित प्रतिमाओं की, जिनसे किरणों का समूह प्रसारित हो रहा है, बन्दना की।
वैजयन्तादि चारों दरवाजों और तोरणों को देखा। मानरूपी मन्दराचल का नाश करनेवाले तथा माणिक्य की किरणों से उज्ज्वल मानस्तम्भ, सरोवरों की स्वच्छ खाइयों, खिली हुई लताओंवाली वेदिकाओं, प्राकारों, नटराजों के घरों, मुनिनाथों के निवासों, कल्पवृक्षों के वन और एक योजन का बना हुआ मण्डप देखा, जिसमें विश्वजन-समूह बैठा हुआ था। बत्तीस इन्द्र (कल्पवासी १२, भवनबासी १०, व्यन्तर ८ और चन्द्र तथा सूर्य), एक भरतेश्वर चक्रवर्ती, जो मानो दूसरा इन्द्र था, ज्योतिषपति और चन्द्रसूर्य जो सत्पुरुषों और महापुरुषों को पीड़ा उत्पन्न करनेवाले हैं, किन्नरपति दोनों महानागराज, जो काय और महाकायांक से अत्यन्त भयानक थे।
पत्ता-किंपुरुषों के दो इन्द्र थे जो पुरुष और किंपुरुष कहे जाते हैं। सोमप्रभ के पुत्र ने अपनी गृहिणी की
जब सुन्दरी चैत्यों की वन्दना करती है वहाँ दो मुनिवर विद्यमान थे। वे दोनों देवों के साथ उस समवसरण के लिए गये, जहाँ त्रिलोकशरण ऋषभ निवास करते थे। वधू-वर भी गुरु-चरणों को नमस्कार कर उसी मार्ग से वहाँ गये। जिन भगवान् के दर्शनों की इच्छा रखनेवाले उन दोनों ने भी वहाँ पहुँचकर वर-विजय-
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