Book Title: Adi Purana
Author(s): Pushpadant, 
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 702
________________ सेस परिपसरियकिवेण तवरले सरहाहिवेण परिवडणाचिरुणाजा उप्या साठ केवलुता खता हूयउ परमेहिपरण्णताणु चरदेव निकाय हियु इमाण फेडेविल वह भागमोह जालु महिमंडल विहरे विदाइका प्रतिमा विषु हम विविदकम्मबंध दिख फणिवर किष्परपवरनर पुष्पदंतगण थुने ॥२॥ ममदापुराणे तिसहिमहापरिसरा शाल कार (महाकष्फीतविरश्यामहा संस रहा एमपिएमा कडे। समाहररिसनाइल रहनिद्यारागमखणाम सत्रतीसमोपरिने समन्ते ॥२१॥ळा या ॥ श्रादिपुराणखंड होनजा ३४२ प्राणिमात्र में कृपा का प्रसार करनेवाले उसने तपश्चरण स्वीकार कर लिया। उखाड़े हुए बाल जबतक धरती संस्तुत भरत भी मोक्ष चले गये ।। २५ ।। पर गिरें, इतने में उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हो गया। वह स्व पर का रक्षक परमेष्ठी हो गया। चारों निकायों के देवों के द्वारा स्तूयमान वह भव्यजनों के मन के मोहजाल को नष्ट कर और लम्बे समय तक धरती पर बिहार कर घत्ता - विशुद्धमति विविध कर्मबन्धनों से रहित, नागों किन्नरों, प्रवर नरों और ज्योतिषगणों के द्वारा Jain Education International इस प्रकार त्रेसठ महापुरुषों के गुण- अलंकारों से युक्त महापुराण में महाकवि पुष्पदन्त द्वारा विरचित एवं महाभव्य भरत द्वारा अनुमत महाकाव्य का सगणधर ऋषभनाथ-भरत निर्वाण-गमन नाम का सैंतीसवाँ परिच्छेद समाप्त हुआ ॥ ३७ ॥ For Private & Personal Use Only www.jair 683y.org

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