Book Title: Adi Purana
Author(s): Pushpadant, 
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 700
________________ विसाए मुणिवरसवारियपछिमाए तिमिविसिदिवहिदासान्निहिंघमञ्चतिलयलेतितिः पदि तमामविजयज्ञपविच अपकहिलश्यअग्निहोच सालालकवठवजयलसिहाह प्पपिहियठनाहिर्विवरेझमहासमनडमलाए जसमंडपजिहतसहरकाप घनाजंत्र म्हहजाम्ममाखसुद्धातमऊहाउँधियारमा यसपेवितियावसुर्वेदिदटाईरिसहहोकरराव जहावहतहाहाटवहिरविलडायमणसमाहिश्यियासतहिकप्यामरहिं वदियूडतियाउखा खयरह वितरवाहिजोशसगणेहि वदियानतियाठसतावणेहि पदादेवापमहासश्या वंदियठा तियायजसवका साहेण्इखमियमणाबंदियउतियात उसपरियपण केसरिकिसरिसरिमिदरखासघपलहिणाक सामालमाहमासमस्यामकिसणचठहसाहानवयातच करपुराससीहिरोयश्सायाधरुसयपबिंडा सेक्सॉयश्तर। हमहामारडतिलाकमादराधारखवाकहिपहामिदडप गाश्वलायनपशविपुजिणघालायकई दिसअसा समनुपामविहछममाहिमदापश्याठवण्श्नचिनना ३४१ सत्कार किया, मुनिवरों ने पश्चिम दिशा से, ब्राह्मणों और क्षत्रियों ने घी, जो तथा तिल डालकर तीन दिशाओं कल्पवासी देवों और विद्याधरों ने भस्म की वन्दना की। व्यन्तरदेवों, ज्योतिषगणों और भवनवासियों ने भी से आग की पूजा की। उसे पवित्र पुण्यार्जन मानकर, दूसरे कई लोगों ने अग्निहोत्र यज्ञ स्वीकार कर लिया भस्म की वन्दना की। महासती नन्दादेवी और यशोवती ने भस्म की वन्दना की। दु:ख से पीड़ित मन भरत ! भालतल, कण्ठ, दोनों बाहुओं के बाजुओं, हृदयकमल और नाभिविवर पर, बाद में मस्तक प्रदेश और मुकुट ने और परिजनों ने भी भस्म की वन्दना की। जिसमें सिंह के शावकों का शब्द है ऐसे पर्वत पर निवास करनेवाले के अग्र भाग पर विहित वह भस्म ऐसा मालूम देता है, जैसे शरीर यश से मण्डित हो। माह माघ में कृष्ण चतुर्दशी के दिन सूर्योदयकाल में पुरुष श्रेष्ठ तीर्थंकर ऋषभ के निर्वाण प्राप्त करने पर शोक घत्ता-जिस प्रकार तुम्हें मोक्ष-सुख प्राप्त हुआ है, वह प्यारा सुख मुझे भी हो, यह विचार कर इन्द्र से व्याकुल स्वजन समूह रोने लगता है, महानरेन्द भरत स्वयं शोक में डूब जाता है कि त्रैलोक्यरूपी मन्दिर ने ऋषभ के उस भस्म की वन्दना की॥२२॥ के आधार-स्तम्भ और युग के आदि ब्रह्मदेव को मैं कहाँ देगा! २३ घत्ता-हे जिन, आपके बिना नेत्र अन्धे हैं, अशेष दिशाएँ सूनी हैं। बेचारी उत्कण्ठित प्रजा अपने दोनों "हे आदरणीय, जिस प्रकार तुम्हें बोधि प्राप्त हुई, वैसी हमारे मन में भी समाधि हो।" यह कहते हुए हाथ ऊपर कर रो पड़ी ॥२३॥ Jain Education International For Private & Personal use only www.ja681ry.org

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