Book Title: Adi Purana
Author(s): Pushpadant, 
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 692
________________ गाणाणणेय असिमलेप विसरिसदिति सिर लोनविश्नपंचमुहि वेसावेषविमुक गथ निमथुणिमुछियमाखुपथ जडरिकिउपगविवि यह बहसपहिसकमरदर्शद लग गईधारहासखियाई चोहसवानलखियायोमणिवस्मद्धिविमोहवासंजा यउगपहरुरिरहेसगखाधना सनरामिडवलवसंचरिख यम्मुहपसरणिवारा अyगामिपिउहामिहासजम घरमिनदार अश्येडवाणिवकलेवणवाशलिप्तर भयपकडियमंदिराकटाकलापहायनिवाडयाइनासंतश्का गणेनिवटियाशनियकतासमविहिनयाजमहलसििमलियममनिसपा अध्यय ऊमणिवजावबुकिय दियउबठकाशवधामाधवन जयडजायधाराववालय होहिविसादयवयाजश्यङउपमईखमरालालालाधयविमलंघराशेगिसदसणाई। लिखमणाश्त्य ङसराश्वाणीवजणाशतध्यडलमाबददयानरुहासाचरितमा चरिचणाससजावसंतादरेण तेवयाँसमिनिमुषिवरण सज्ञण्योणिगणपदियाश्च ३३० शत्रु और मित्र में समान दृष्टि कर, पाँच मुट्ठियों से सिर के बाल उखाड़ लिये, और द्रव्य तथा भाव की दृष्टि किये गये कर्म के प्रभाव से प्रताड़ित हम भागते हुए जंगल में गये। उस समय सुधीजनों के हृदय का चोर से परिग्रहमुक्त हो गया। निग्रन्थ और मोक्षपथ को देखनेवाले दीक्षा से अंकित जय को आठ सौ राजाओं के सामन्त ) शक्तिषेण अपनी कान्ता के साथ सरोवर पर मिला। जब हम लोगों ने मुनि की वैयावृत्त्य की तो साथ मुनियों ने प्रणाम किया। उसने बारह अंगों को सीखा और चौदह पूर्वो को उपलक्षित किया। वह मुनिवर किसी प्रकार हृदय धर्म में स्थित हुआ। जब हम कबूतर हुए, हम दोनों ने श्रावक व्रत ग्रहण किये। जब हम मोहपाश छोड़कर, ऋषभेश्वर का गणधर हो गया। लीला से विशाल आकाश का उल्लंघन करनेवाले विद्याधर हुए, जब मुनिदर्शन से विस्मित मन हम दोनों ___घत्ता-हे कामदेव के प्रसार का निवारण करनेवाले आदरणीय, मैं पूर्वभव की गतियों को स्मरण करती सुर हुए। तब से लेकर हम वधू और पति रहे। अरे, तुम्हारा चरित्र ही हमारा चरित्र है। (सुलोचना के) ये हूँ, मैं तुम्हारी अनुगामिनी बनूँगी, मैं संयम धारण करूंगी॥९॥ वचन निःशेष जीवों को शान्ति प्रदान करनेवाले मुनिवर ने पसन्द किये। सज्जनों के गुणों को ग्रहण करने १० में आनन्दित होनेवाली जब वणिग्वर के कुल में हम वणिक् थे और शत्रु से भयभीत होकर हमने अपना घर छोड़ा था, अपने Jain Education International For Private & Personal use only www.jaine673arg

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