Book Title: Adi Purana
Author(s): Pushpadant, 
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 697
________________ हदोसामाहामाणइंगणवीसाअसमाहिाणल्यावहाखिवीसाक्रमणमलसवूलविपकवास वादासपरामहक्रमणिसामसहयडायणांविनिवास तिवरलण्यिचउवासश्ससाणक्यमा यग्घुणुपचवासा बाससमासिटवसहयागुणसतवासजश्वविद्ययायामारकप्पपवरहवास । अधसत्राविण्जगतासाचाणयामाहमदिवासातारयादियतासावायरसाकम्मश्कया हियजिषसे वन्नीसवपसमुपासह कृडिलाउचिमकेसाणाजजलेथलेनदयायालरले साखर सहसतिजगतराले तमुळतदोपपवियसिासू सासिनजिपणसरसामुगुरुवंदविणिदेविड हिउडड्गठनिउनियपुरुनिलदयापहमरनाईयमिहसुन्नपणा सिविपतगुरुपयलझेरणा सूयरदाढाखडियकसकालखलिउनिहाडितणमरुद्धिनपह गसुयपाहिएणयविण यविवरणराहिएणा दिउणालणगलियजलविंडएदिवछळखुदागवरिखुएहि तिहारपणिय यरिविलुकमाण कालाहिमलासुदनिविडमाडुनहारावलाठवणाणदीपुचठदहदिपवरिस सहासहीण मदिविदरिविधवपलखुकलाखपरालणाणचख पावणवणकुसुमामोसम सारुहविपसिउसिहिसिलधिनादससहसहिसम्ममहारिमिहिकाम्कोहनिम्नासया थिवखणिमदियदजियादिवशवधविपलियकासामाजोपविजणजणपदोजयणक्य। दोष अठारह हैं, ध्यान उन्नीस होते हैं, कुमुनियों को डरानेवाले परिषह बाईस होते हैं... तीर्थकर ईश चौबीस भक्त भरत ने स्वप्न देखा कि जिसका शिखर सुअर की दाढ़ से खण्डित है, ऐसा सुमेरुपर्वत धरती पर लुढ़क होते हैं, मुनिव्रत की भावनाएँ पच्चीस होती हैं; वसुधा के भेद छब्बीस हैं, यतिवर के भेद करनेवाले गुण रहा है। सवेरे भरत ने यह स्वजनों से कहा। हितकारी पुरोहित ने, वक्षःस्थल के हार पर गिरती हुई, नयनोंसे सत्ताईस हैं। आचार कल्प के अट्ठाईस भेद हैं, और अर्धसूत्रों के उनतीस। मोहरूपी मन्दिर के तीस भेद कहे झरती हुई अश्रुबिन्दुओं की धारा द्वारा स्वप्न का विवरण बता दिया। तृष्णारूपी निशाचरी के द्वारा विलुप्त, गये हैं। कालरूपी महासर्प के मुख में पड़ते हुए. दीन अज्ञानी लोक का उद्धार कर, जब एक हजार वर्ष से कम चौदह पत्ता-कुटिल और आकुंचित केशवाले जिनेश्वर ने कर्मों के इकतीस विकार-रस कहे हैं, और दिन शेष बचे, तब एक लाख पूर्व धरती पर बिहार कर ज्ञाननयन ऋषभनाथ कैलास पर्वत पर पहुँचे। पवित्र मुनीश्वरों के लिए बत्तीस उपदेश ॥१७॥ वन के पुष्पों के आमोद से मधुर प्रसिद्ध सिद्ध शिखर पर आरोहण कर घत्ता-काम और क्रोध का नाश करनेवाले जिनाधिप ऋषभ दस हजार महामुनियों के साथ पूर्णिमा के जो जल, थल, नभ, पातालमूल और तिजग के भीतर स्थूल और सूक्ष्म है, प्रणतसिर उसे पूछते हुए दिन पर्यकासन बाँधकर बैठ गये ॥१८॥ भरतेश्वर के लिए आदिजिन ने सब बताया। गुरु की वन्दना कर, और दुष्ट पाप की निन्दा कर भरत अपने नगर के लिए गया, और उसने अपने घर में प्रवेश किया। रात्रि में सोते हुए जिनवर के चरण कमलों के पिता के संसार-त्याग का समय जानकर १८ १९ For Private & Personal use only Jain Education International www.jainelibrary.org

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