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रेषा ताक्हिसेविचविठपुरंदरण मेलहिलरहादिदलावण्डका दासगणाहरुतवलचिगेज तियासिंदहोतिपडितपुतेपनि सपणिणिग्राउछियजाण अधिपियामिल्यहानिया या जपाविसवासहोगयाजसतिसापरिपालिदान
THEO रिणाविरसिहिाजालियाई जरगुरणहरवारियाईवाल लिविमजारेमारिलाई मणिवरशेखलेखानिहालियाई जी माता पिलियाई वेटलितणसाहादराईजायासजिवडवराईजवणेपवारिसामसाज हवसातलोकपाक तयअभिमुदारिजाच्या साहवद्यमईपरलोयकताना आद एमविचलसंसारगविजाणिनसबसरिए आमलिठपिलयमुपशषण सौदगिरधारणा राणालङसाहिविजयाडिसादारोई दिकवविधमकमायविवान्निधतिणनिह पहलु मालावजापुर्णपायमजस्कारिवितधातवीरुगुरुविणनवडपूरलायसारुताहोपर्ड निबंधविजयवरण मिपावसमकारिविक्षणरण श्रामविजाबाजीवलेखापारियाणेविणा
घत्ता-संसार की चंचल गति सुनकर, अपने समस्त शरीर को कैंपाते हुए, पर्वत की तरह धौर उस प्रणयिनी ने चाहते हुए भी प्रियतम को मुक्त कर दिया।॥८॥
इन्द्र ने हँसकर कहा-हे भरताधिप, आप इसे छोड़ दें, यह जाये। तपलक्ष्मी का घर यह गणधर होगा। तब भरत ने देवेन्द्र के लिए इसकी स्वीकृति दे दी। जयकुमार ने अपनी पत्नी से पूछा-"जो पहले हम पिता के घर से निकले थे, और जब सरोवरवास पर भागकर गये थे और (सामन्त) शक्तिषेण ने हमारा पालन किया था, और घर में शत्रु के द्वारा आग से जलाये गये थे, जो भंगुर नखों से हम विदीर्ण किये गये थे, और दोनों मार्जार के द्वारा मारे गये थे, हम मुनिवर उस दुष्ट के द्वारा देखे गये थे, और जो मरघट में जलाये गये थे, और जो वैक्रियिक शरीर की शोभा धारण करनेवाले स्वर्ग में वधू-वर हुए थे, और जो हमने वन में भीमसाधु को पुकारा था, और जो वह त्रिलोकनाथ हुआ, हे सुन्दरी, मैं उस सबको याद करता हूँ, आज मैं अब जाता हूँ। मैं अब अपना परलोक कर्म सिद्ध करूँगा।"
धर्म का आदर करनेवाले विजय आदि छोटे भाइयों ने भी दिये जाते हुए पृथ्वी राज्य को तृण के समान समझा और पिये गये मद्य के समान मदभाव को उत्पन्न करनेवाला समझा। उसने अनन्तवीर्य पुत्र को बुलाया, जो गुण और विनय से युक्त परलोक-भीरु था। जयकुमार ने उसे राजपट्ट बाँधकर, मेघस्वरवाले उसने जिन की जय-जयकार कर, जीव-अजीव के भेद को जानकर, नाना ज्ञानों से ज्ञेय जानकर,
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