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गजाईमदिद्दिय सुरसरितरंग ससियर सियाँ जहिं चरदनराहिवनिमियाई घत्र।। चामी युर डिमई मणिगण जडियई दिइवर इंडियासरखं पयेयणमय सो सर्वं तहिचन वा सर्द दिखला
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वे दोनों वहाँ गये जहाँ महा ऋद्धियों से सम्पन्न, देव गंगा की जल- लहरों से शीतल भरत राजा के द्वारा निर्मित, घत्ता स्वर्णरचित मणिसमूह से विजड़ित, जिनके पैरों पर इन्द्रादि प्रणत हैं, जो दीक्षा के द्वारा संसार की दुराशाओं का दमन करनेवाले हैं ऐसे चौबीस जिनेश्वर के मन्दिरों को देखा ॥ १९ ॥
| डुरासदं । रिसईरिसिभग्नपथासयर अनियंजियवमहमु कसर संसदेवसल सहणं श्रहिण ३३३
चडवी सतीर्थ करपूजन।।
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मुनिमार्ग का प्रकाशन करनेवाले ऋषभ को, कामदेव के द्वारा मुक्त बाणों के विजेता अजितनाथ को, संसार का नाश करनेवाले सम्भवनाथ को, संसार और धरती को आनन्द करनेवाले अभिनन्दन को,
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