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श्रीयालत डिमा लिनीबदर ॥
वण लिगलंण्ड समरि थियम् भूनिरो हिनितहिख यरि सात वह इलाज गंधारिर्पि गुनामणरवसा हतोत्र नववलय नियंति जरासँमे सण मनसे द्यवि गणुनिबंधेवि विडी हिवकानामन हयर नाद हा गेहणिय ही जगेयसिद्ध मडिमालि गिल विनासहास संप४रहे रोजयहन विज्ञाहरहं महिडबडा काविति तंवितरह सणादिवश सासहिहमुद रिमूदम नसरुसपथ दोसऽरिणिय विपहिनामविहार रिपिप मणि सभाणी परधरिणिजो पइससश्व इतरिणि सोपमणिरुणिग्निष्ठ दउ पुत्र होमि मातपड तारुसेविपिंगलकसिय डास इएरवलिय पेसियन सिससिसलिहदाढा लिएर नवघणनी लंज कालियर चचजी हापश्चद वयणियर गुंजा जारुणायणियठ लंबिया सफणिम हेलर, किलिश्सकयकलला सुरपुविष्मासदि विज्ञविलासहि थिरसरधारा महहिं आयदि पण रोजहि तिन्नम हा सड देहहिं ।। 20 जयसाल विमुद्विणतेहिंद ३३२
वहाँ पर जयकुमार के रूपरूपी कमल की लम्पट एक विद्याधरी रास्ता रोककर बैठ गयी। वह कहती है कि स्वैरचारिणी, मार्ग से हट हे व्योमविहारिणी! तू क्या कहती है ? परस्त्री मेरे लिए माता के समान है। जो यहाँ पर तीनों विश्वों को तोलनेवाला गान्धार पिंग नाम का विद्याधर रहता है। वैतरणी नदी में प्रवेश कर सकता है वह अत्यन्त निर्धन तुम्हारा सेवन करे हे माता, मैं तुम्हारा पुत्र होता हूँ।" तब उस असती ने क्रुद्ध होकर पीले बालोंवाले निशाचर को भेजा, जो बालचन्द्र के समान दाढ़ोंवाला, नवमेघ और अंजन के समान काला, चंचल जीभरूपी पल्लव के मुखवाला, भुजा-समूह के समान आँखोंवाला, लम्बे घोणस साँप की मेखलावाला, किल-किल शब्द से कलकल करता हआ।
धत्ता- इन्द्रधनुष के विन्यासों, बिजलियों के विलासों, स्थिर जलधारावाले मेघों तथा बड़े-बड़े सुभटों के शरीरों का भेदन करनेवाले नाना प्रकार के अनेक शस्त्रों के द्वारा उसने उसे घेर लिया ॥ १७ ॥ १८
उनसे भी जयकुमार के शील की पवित्रता नष्ट नहीं हुई।
धत्ता- मैं उसकी कन्या हूँ। नवकमल के समान भुजाओंवाली तुम्हें देखते हुए जगसुन्दर कामदेव ने प्रत्यंचा पर तीर चढ़ाकर तथा अपने स्थान को लक्ष्य बनाकर मुझे विद्ध कर दिया है ।। १६ ।।
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नमि विद्याधर की गृहिणी मैं विश्व में तडित्मालिनी के नाम से प्रसिद्ध हैं। हजारों विद्याओं की सम्पत्ति धारण करनेवाले विद्याधरों के युद्ध में अजेय हूँ। हे सुन्दर, यदि तुम आज चाहते हो तो तुम्हारे लिए कुछ भी दुर्लभ नहीं होगा? यह सुनकर भरत के सेनापति जयकुमार ने कहा- "हे सुन्दरी, तुम मूढमति हो। हे
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