Book Title: Adi Purana
Author(s): Pushpadant, 
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 679
________________ श्री पालुदी साध रसह अतरेण सोलह सदास धरणी सरका तेसपछश्यम ही सरड संसारघोर लारें लाना वसुना लुनरिंडविपञ्च इन सद्धपुत्र सहा में सो सहर तसं अमुतं वनको वह देविर्हि परम थियापियईपणास सहसा राया पियहं खुशिय धम्मयउझियर शात सेठियसम सुहाव ईघता सा चरिठा चोणिएणु तेकुमरणि सइयमरा हिव Jain Education International गवरमें घावश्पुर नविडुई। 12 जहिंद स्कातण्हाणिडिमा नउ देसान घडिय अदिसत्रु मिल्नुपघरिणिघस जाईलाइन कोइनका मजरु नउमाणु नमायणमोडमठ जहिकेवलुजा उजेयाणमना माई दापंच विनकि, उसके साथ सोलह हजार गम्भीर घोषवाले राजा प्रब्रजित हो गये। संसार के घोरभार से विरक्त होकर वसुपाल के धर्म के प्रभाव से ऐश्वर्य आगे-आगे दौड़ता है ॥ १२ ॥ राजा भी प्रब्रजित हो गया। वह हजारों पुत्रों के साथ शोभित है, वैसे संयम और व्रत को कौन धारण कर सकता है! परमार्थ को जाननेवाली पचास हजार रानियाँ भी रति को छोड़कर, धर्म को जानती हुई, सुखावती के साथ तप में लीन हो गयीं। बत्ता - वह भी तपश्चरण कर, और मरकर वहाँ से स्वर्ग में इन्द्र हुई। कर्मों को नाश करनेवाले जिनवर सुधावती आदे दोहाधराग॥ १३ जहाँ न भूख है, न प्यास है और न नींद है, जहाँ शरीर सात धातुओं से रचित नहीं है, न शत्रु है, न मित्र है, न गृहिणी हैं, न घर है, जहाँ न लोभ है और न कोप है, जहाँ न काम है, न ज्वर है, न मान है, न माया है, न मोह है, न मद है, जहाँ जीव केवल ज्ञानमय है, जहाँ पाँचों इन्द्रियाँ और मन भी नहीं हैं, For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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