Book Title: Adi Purana
Author(s): Pushpadant, 
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 678
________________ यवसझं खयरकनिसकेरसमुधिसङ्कगमखासकरिसहरिसरशाअखिरहरिद्ध श्रीयालुमहीसा जनसरडावेनहमीहरसंघशविज्ञाहरण्यस्मदिहरश्सो हियफणिजनिकिन्नरिवितहासशकंपकिन्नरविपरमप्य Haबहमासुघर निजसपिरिश्रवसेंनासुको उजतहोकामसे सुदईलरकाश्तासपछलगनश्पक्वहिदिपहिणुनिवज्या गुणपाली स्लायतिपहिवाहियात्रा। विटाविणीसहधपणाससंह डखायामियकाचहापापा करकवलातानः शिवपठागुणसंधमा सुचरिठवीणाकसायहाश्था चटनीसा । तिमविसेसघससंमायकेवालतियाणवाराडारख यूपमहिट विदरमहिलेवहिसहियठ संबोदियवद्धता वियरका जिगासरुदेठेमहसखुलासालश्नबहा सधरासिरिखालविजविसरलवरपम्फलिपवालकमलम् । शा हहासिरिष निवधवितपुरुहहो परिचितविजमानरामरण नियतणनजिर्णिदहोगउसरा भोगवती के साथ तथा अपने भाई के साथ वह विद्याधर राजाओं में अपनी आज्ञा स्थापित करने के लिए क्षीणकषायवालों का गुणों से परिपूर्ण समस्त चारित्र स्वीकार कर लिया ॥११॥ अनुचरों, घोड़ों, गजों और रथों के साथ गया, मानो शत्रुरूपी हाथियों के झुण्ड पर सिंह टूट पड़ा हो। बह १२ विजगाध पर्वत पर परिभ्रमण करते हुए विद्याधर राजाओं की धरती का अपहरण करता है। वह सिद्धों और वह चौंतीस अतिशयों को धारण करनेवाले केवलज्ञानी तीर्थकर हो गये। गुणों से महान् आदरणीय किन्नरों को सिद्ध कर लेता है । उसके भय से सूर्य काँपता है । जिसके घर में परमात्मा का जन्म हुआ है उसकी गुणपाल देवों के साथ धरती पर विहार करते हैं। भव्यरूपी कमलों को सम्बोधित करनेवाले हे जिनदेवरूपी गोद में लक्ष्मी का निवास अवश्य होगा। सैकड़ों कामभोगों को भोगते हुए उसके तीस लाख वर्ष बीत गये। सूर्य, आप मुझे शीघ्र मोक्ष प्रदान करें। बयासी लाख वर्ष पूर्व तक, पर्वतों सहित समस्त धरती का उपभोग एक दिन जिन भगवान् को वैराग्य उत्पन्न हो गया। लौकान्तिक देवों ने आकर उसे सम्बोधित किया। कर श्रीपाल भी खिले हुए बालकमल के समान मुखवाले बालक के सिर पर पट्ट बाँधकर जन्म, जरा और घत्ता-निर्धन और दुःख से झुकी हुई कायावाले समस्त दीन-दुखियों को धन दिया। फिर बाद में उसने मृत्यु का विचार कर अपने पुत्रों के साथ तीर्थंकर गुणपाल की शरण में चले गये। Jain Education International For Private & Personal use only www.jain659org

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