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जाताएणसमठपायकमरितहि निवसश्सहठवलजयित्रण
श्रीयालुजसम संपनुकंपणुसकरिससंदणु पेवेविचषुणहंगणगयविमिवि
तीसुमावतीत्र सायरा समुहसायरमग्नमाणचालिंगणा घरेस्त्रासीणाईसा
तिबिमावणी ह्याला अनागपूडिवनि कयाहामुतवडावरणसणि यार्किहाईहालियाणणिदा घणुसहस्राक्वजिविज्ञलिए वणु सोहरयंकएकोलए इसाहरिहठपकाएपण गुरुवदयाका ऐवस्ताविमश्मारूसदिसणवत्तालिए अलिनीलकडिलमडकोतलिसतयणरासनिमन्त्रणाली जायउत्तहेरम्मुपन्मुघपाठावपिलसपाश्मरभणवसातडित्यतड़िवेदहोताणसाचलणलणार अञ्चलमिजियहरिणिकतामयणवस्तरुणिचउवहमहासईगणियाही परिणियईतणखग राणियाहीपूण्ड भिरुखमसायबखगवसनमा सायबशायना सेणावशगहवशाह मगदतिवमश्थववाहितसजीवरक्षणरजिम्ममणईसनतासर्मपत्नशीगरोसे सहावईकरशश्साएनपियपुरेश्ससुरमपियवाणियलणसिरिदिाधनसवपुरएप्ति सुरगिरिह घरदामिहिजसकलकि श्रमेवर्हिरायोविनवित परमवापसबपरिवति
Maसायन्सुमनामनाम मनतालमपालनपुरणाय
पसलकरतिववशवउवयन
अपने पिता के साथ कुमारी वहाँ गयी जहाँ उसका प्रिय वर निवास करता था।
भी आ गयी। अपने चंचल नेत्रों से हरिणी को जीतनेवाली रतिकान्ता और मदनावती युवतियाँ भी आ गयीं। घत्ता-अपने हाथी और घोड़ों के साथ अकम्पन वहाँ पहुँचा। नभ के आँगन को आच्छन्न देखकर दोनों इस प्रकार उसने आठ हजार विद्याधर रानियों से विवाह किया। फिर बाद में उसने अनुपम भोगवाली विद्याधरही भाई आलिंगन माँगते हुए आदरपूर्वक सम्मुख आये॥३॥
पुत्री भोगवती से विवाह किया।
घत्ता-सेनापति, गुरुपति, अश्व-गज-स्त्री-स्थपति और पुरोहित से युक्त तथा आँखों को रंजित करनेवाले स्नेह और दया से परिपूर्ण वे घर में ठहरा दिये गये। शीघ्र ही उन्होंने अभ्यागतों का अतिथि सत्कार सात जीवित रत्न उसे प्राप्त हुए॥४॥ किया। नीचा मुख कर बैठी हुई वधू से कुमार ने कहा कि तुम्हारा मुख मलिन क्यों है? धन एक बिजली से शोभा पाता है, और वन कोयल से शोभित है। यहाँ मैं शोभित हूँ तुम्हारे एक के द्वारा । तब भी मुझे गुरुजनों सुखावती क्रोध से हुँ करती है, और ईर्ष्या के कारण प्रिय के नगर में प्रवेश नहीं करती। जिसकी वनश्री से वचन करने होते हैं। इसलिए सज्जनों के प्रति वत्सल रखनेवाली तथा भ्रमर के समान नीले धुंघराले और देवों के द्वारा मान्य और वर्ण्य है ऐसे सुमेरु पर्वत पर घर बनाकर वह रहने लगी। गृह-दासियों के द्वारा यशस्वती कोमल बालोवाली तुम मुझसे रूठो मत। इन शब्दों से उसके क्रोध का नियन्त्रण हो गया और उसका प्रेम का रूप बना लिया गया। एक और ने आकर राजा से निवेदन किया-"हे परमेश्वर ! वणिक् कन्या का सघन तथा सुन्दर हो उठा। इतने में प्रिय की वशीभूत बप्पिला आ गयी, विद्युद्व और विद्युत्वेग की बहन अपमान किया गया है,
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