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गरेमग्निटामिगलालगिरिजघरमालोपतें गुजाणियमाहाप्रियमाणसुत्रवमाणिसूम ललको
वानयतवपाहागरम किंजयजिवविविरहमाश्यचिंतेविमहारुगवनरुपेसिटलकललि श्रीपालप्रतिलेख
पलब्धसांसपञ्चमूलङ्गथकंपणी जियोचरणप्ततिताविनय लग्राम विद्याधरु
पहो धनाले सहपाटो विखगडापडिटखगिददि पालाई अङ्ममिनसणविणियडझाप वमुसिरिवाहि रादाहिनेपविनियादछनिवेश्मश्रालिदियउपपल्लोज मन माहवाहपत्रिमर्दि अलवंताहिविपलवसिमाहिं के
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सुखावती को घरों-घर ढूंढ़वाया। उसे नहीं देखते हुए वह समझ गया और अफसोस करने लगा कि मैंने अपने की पंक्तियों के द्वारा शोभित था। कंचुकी के वचनों से स्वयं सुनकर जो मैंने सेठ की कन्या से विवाह किया प्रिय मनुष्य को अपमानित किया। वह अत्यन्त लज्जित होकर अपने भवन में गया। प्रत्येक प्राणी विरह से है वह मैंने अपने कुल में मर्यादा का पालन किया है। परन्तु मेरा मन, तुम्हारी पुत्री के मुखकमल में है। पीड़ित होता है। यह विचारकर सुन्दर श्रीपाल ने एक लेखधारी नभचर मनुष्य (विद्याधर) को भेजा। जिनवर मैं तुम्हारी चम्पक कुसुमावलि के समान गोरी कन्या की याद करता हूँ। जिस प्रकार उसके स्तनतल कठोर, के चरणों में भावित मन विद्याधर राजा अकम्पन के घर वह लेखधर पहुँचा।
उसी प्रकार उसका प्रहार। जिस प्रकार रक्त लाल होता है उसी प्रकार उसके अधर लाल हैं। जिस प्रकार पत्ता-लेख के साथ उपहार देकर वह विद्याधर योद्धा विद्याधर राजा के चरणों में पड़ गया। (और उसके कान नेत्रों तक समागत हैं, उसी प्रकार उसके बाणों का स्वभाव दूसरों को मारना है। जिस प्रकार उसका बोला) दुर्जनों का नाश करनेवाले आप सज्जन, वसुपाल और श्रीपाल दोनों राजाओं के द्वारा मान्य हैं ॥२॥ मध्यभाग क्षीण है, उसी प्रकार यह विरहीजन; जिस प्रकार धनुष गुण (डोरी) से मण्डित है उसी प्रकार उसका
शरीर गुणमण्डित है। पिता के निकट आसन पर बैठी हुई कामदेव के तीरों से घायल कन्या ने यह सुनकर
अपने मन में अच्छी तरह विचार किया कि मेरे स्वामी ने मान छोड़ दिया है। उसके पिता ने भी उससे यही उसने भी अपने हाथ में निवेदित लिखा हुआ पत्र देखा। वह पत्र नहीं बोलती हुई भी, बोलती हुई शब्दों कहा। कूच का नगाड़ा बजाकर सेना चल दी।
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