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Catane
हासिरिचालहोकेगापुलपविविास्यासढगाणमणिवेदविम्बलसंञ्चहउवेणनिमनयरूपाचही
सुज्ञविपन्नावलिविजासहिचलिययणाहरणविसेसहिमक्कमहावामिययममाझा धरे झारिणसमपाउसताश्या गदा
सहरिणयमंदिरजाविसवाल होविवाङ्गकउताहिकरपब्जा
चलगनरस्ततिहिं अहोररुसउमर विश्माताहाघवासिणुकहस्सामा
लोयणमियचठियध्वसरिसपत्स्यु हहो सरहा हिवासियहाघारद
होयुष्पयंतसोहियमुहहीरवाला ममहाखापतिसहिमहापारिस
प्रकरणुराजा
वहकिकालेश नकारामहाक अध्ययतावाद हासवहारामणियामहाकाल इसिरिवालसमागमोनामस्वाम मापरिच समाजाला छवि प्रकलाचरतपुवाटारबगहाश्चकपहासासुयशलमदिणेसहमज्ञापनसुहावरणविरता। एससामुदाळासासिठसद्दालणजातियठयापनहरयकुलनियनहहितिसपविभिगणेतिर
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सन्धि ३६ विद्याधर राजा अकम्पन की वह पुत्री शुभमतिवाली सुखाबती, उत्तम रूपरंगवाली छहों कन्याओं के साथ सातवें दिन वहाँ पहुँची। उसने स्वयं अपनी सास को नमस्कार किया।
वसुपाल, श्रीपाल को अत्यन्त महान् शुभकारी पुण्यप्रवृत्ति को सुनकर तथा मुनिवन्दना कर सब लोग सन्तुष्ट हुए। और उत्साह के साथ अपने नगर को चल दिये। माया से रहित प्रियतमा सुखावती ऐसी मालूम होती थी जैसे पावस की छाया से इन्द्रधनुषी। जब वह सुन्दरी अपने घर गयी तब तक वसुपाल का विवाह कर दिया गया। रति से युक्त एक सौ आठ युवतीरत्न उसके कर-पल्लव से लगीं।
घत्ता-इस प्रकार परपुरुष से पराङ्मुख, पुष्पदन्त के समान शोभित मुखवाली सती सुलोचना अपना चरित्र राजावर्ग के अनुचर जयकुमार से कहती है॥१८॥
वह भद्रा बोली-''गुणों से युक्त तथा हरिण के समान नेत्रोंवाली ये पुत्रियाँ तुम्हारी कुलपत्नियाँ होंगी-यह सोचकर
इस प्रकार त्रेसठ महापुरुषों के गुण-अलंकारों से युक्त महापुराण का महाकवि भरत द्वारा अनुमत
महाकाव्य में प्रभु श्रीपाल-संगम नाम का पैंतीसवाँ परिच्छेद समाप्त हुआ॥३५॥
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