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निमलियकाश्पससमिसिटिसिहकिरविपटिमदिमामाचबवाहलखणसम्वन्दलालमहालुम । माताप्रतिश्रीषा
पादप्तडाजपकमवश्वासाऊरावडसारसरहावराड़ा। लुसुधावतीलाध
माहलेकदितरह कहिपोरिसुपखारवियारउ उहक जिस करण
कारकसलधारणलाणयजयनथणकलमकतणयाइव। प्राङपासाञ्चाबहरिभककालपासाश्च ददाखिडका पसयाकलवनसाम गिरिघुग्धरिजधणेसरिडळे सूलिना
सिमुनसिनाचगठजहिलहसुठत्तहिंसटाखविचंगावणुक विरलल्लिएपरिडि केहठसमयकम्मुनियछिठाघवाताकहमहामुणिराणिमहे धोरखारत वतन दिलवेदादिविचहतारुहदियणस्पकिलजिण्डतलाशासगसिहरिसरवरसिरित निधि जिणपडिविचहो जपन्जेवि दिवकमलयिणाया एविलिविश्वहसुत्रसंजायाचमुवाल
घत्ता-इसने मुझे बचाया है। इसके लिए मुझे अपना जीव भी दे देना चाहिए। इस संसार में जिसका को डोरी से आच्छन्न धनुष की तरह है। मेरे पुत्र के लिए कामदेव के पाश की तरह तुम्हारी दोनों भुजाएँ न पुत्र, कलत्र और न सुधीजन ऐसा व्यक्ति दुःखरूपी जल में डूब जाता है ॥१६॥
शत्रु के लिए कालपाश के समान हैं । तब कन्या कहती है कि पुण्य के सामर्थ्य से यक्षिणी ने अपने हाथ से
गिरते हुए पहाड़ को उठा लिया। और त्रिशूल से भेदे जाने पर भी शरीर भग्न न हुआ। हे आदरणीय ! जहाँ १७
तुम्हारा बेटा है वहाँ सब-कुछ भला होता है। कुबेरलक्ष्मी फिर पूछती है कि किस कर्म से ऐसा पुत्र और तुम्हारे साथ ही मेरे मुख का राग चमक सका और हे आदरणीय, मेरा मिलाप हो सका। जो-जो हैं, कर्म देखा? वह सब इस की चेष्टा है। इसी के बल से मैंने शत्रुबल का नाश किया। यह सुनकर विनय से प्रणतांग होती घत्ता-तब महामुनि रानी से कहते हैं कि पूर्वजन्म में तुम्हारे दोनों पुत्रों ने जिनेन्द्र के द्वारा कहा गया हुई कुलवधू को सास ने गले लगाया और वह बोली-हे बेटी ! मैं तुम्हारी क्या प्रशंसा करूँ ! क्या मैं सूर्य- अत्यन्त कठिन तप और अनशन किया था॥१७॥ प्रतिमा के लिए आग की ज्वाला दिखाऊँ! तुमने मुझे चक्रवर्ती लक्षणों से सम्पूर्ण मेरा बेटा दिया। तुम्ही एक
१८ मेरी आशा पूरी करनेवाली हो। युद्ध में तुम सूर हो। कहाँ तुम्हारी युवती-सुलभ कोमलता? और कहाँ शत्रु स्वर्ग में इन्द्र को विभूति का भोग कर, जिनप्रतिमा की पूजाकर, दिव्यदेह को छोड़कर वे दोनों यहाँ को विदीर्ण करनेवाला पौरुष ? जिसने हाथियों के गण्डस्थलों को जीता है ऐसा तुम्हारा स्तन युगल जो धनुष आये और दोनों तुम्हारे पुत्र हुए।
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