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हियधसहासहिदिहलावहिरंतहिवहिरवणुनहराजंपिठमवाहिमकरालामुनर जावसिरिवालपहावेधित परियाणविगुणगणहरिसिएण कामलछिकोमलच्या वासिरिसेणेतहोसिखरखणावायसायदिमासात विजयनगरेजसकिसलूयकदा किन्त्रिमविरकिनिनरिंदखणधलटरिक्षणादायसोयदिपा हिवरायविमलसण्टाश्या
सेनापतिस्पत्ते पुरापालपणासेठपाचश्यवश्सपुरोहियाणिवणयपरिणय
शहितरत्नसाथ मरवणुविसदावईपणिनचालिउधूमवेलगयणहमिहालिला
दस सिरुमवरजलाध्यायण वासपाणिवखासविलायण। धूमवेगुरास
हरगगरलतमालुवकालन दवावदनकरिश्री पालयासित्राया।
सकडधक्यपाहणतेना। रिवाश्यतपुत्रगण पवारियरणेतणसुदावश्मल्लिा सिरियालरतावशमामअग्नएधरहिसएसणु माक्वहिदा यासेजमसास्णु घिनाजसुहियवएसडकारुणविहेलेन ३२२
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हजारों अंधे लोग आँखों से देखने लगे, बहरे का बहरापन दूर हुआ, गूंगे लोग सुन्दर आलाप में बोलने लगे, मति पुरोहित के साथ सेनापित और गृहपति भी प्राप्त हुए। सुखावती फिर भी पति को ले चली। उसने आकाश मृत व्यक्ति श्रीपाल के प्रताप से जीवित हो उठा।
में फिर धूममेघ को देखा। दस सिरोंवाला ईर्ष्या की ज्वाला उत्पन्न करता हुआ, बीस हाथ और बीस आँखवाला, __घत्ता-उसके गुणगान को देखकर श्रीपुर के स्वामी राजा श्रीशयन ने हर्षित होकर कमल के समान नेत्रों विष और तमाल की तरह काला, भौंह की वक्रता से युक्त भालवाला, कानों को कटु लगनेवाले वचनों को और हाथोंवाली अपनी बीतशोका नाम की लड़की उसे दे दी॥५॥
बोलते हुए उस स्त्री ने श्रीपाल और सुखावती को तिनके के समान समझते हुए युद्ध के लिए ललकारा और
कहा कि हे रसावति ! तू श्रीपाल को छोड़-छोड़। मेरे सामने धनुष धारण मत कर। हे हताश, तू यम के विजयनगर में यशरूपी कोंपल का अंकुर यशकीर्ति अंकुर, वरकीर्ति राजा ने कीर्तिमती कन्या और शासन से भी नहीं बच सकती।। धान्यपुर के धनादित राजा ने अनुराग से विमलसेना कन्या उपहार में दी। उसे राजनीतिविज्ञान में परिपक्व घत्ता-जिसके हृदय में योद्धा का अहंकार नहीं है।
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