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वीरनसाधनं श्रीपालन
हिवि संकलकर वालुपसा देदि तरुणतरुणिषिद्ध तरुणडढोयूड, पीडेदिमुहियतेण पलोयठ वड विज्ञा समक सामग्नय मुद्यामुइद सोहम प्रणुपदम लेग पिउ महिय तु दिह भ्रमण चालु अमलिय वलु चरणरहितवसिकसा लड स्याण सहिउ प्यावे श्मश उठ दूरमुक कंचन कारण इस दिसणं पला महाघणु डरसणु लिमेसिन नंखख पुश्पा लुणाव राज्यमंडल परतावा विरणन्नठ काले काल दा सुधित्र अणुविण जगसपी स दिमाखदादिधरहिसरेण प्राणहरं उपमत्र सोविसहरुलाम विगणयले महियलि कतिनिहित्र जामनसेोजि रयण गजघुडा जंजियंति समरेपडुपडिलड, गुला
लिय दिन विरिञ्चवन्नड ते पलपिल कवर्डेपणवेपि पहदा विकुलिस मखलाए। पिए जश्शुद्धं एटरमण ईघ हहिं तो जाण मितिअ विपलो हर्दि तोतें ताम्बनि र मडलाचिय
इंडसी लमण सिद्धई मुणविणमसिठलोय। ममिठ वमिउ दिन्नविहाय ि
उस भयंकर तलवार को सिद्ध कर, कुमार के लिए जो तरुण सूर्य के समान उपहार में दी गयी उस तलवार को उसने अपनी मुट्ठी से दबाकर देखा अनेक विद्याओं की सामर्थ्य से सम्पूर्ण मुग्धजनों के लिए सौभाग्यस्वरूप मुग्धा सुखावती फिर नभतल से ले गयी। फिर उसने धरती-तल और अमलिन बलवाला एक युगल पुरुष देखा। जो पैरों से रहित कुशल तपस्वी की तरह था। जैसे रत्नों से रहित समुद्र हो। मानो जिसने अपना कवच छोड़ दिया है, ऐसा युद्ध करनेवाला योद्धा हो मानो असा विषवाला प्रलयित महाघन हो, मानो दूसरों के दोष देखनेवाला दो जिह्वावाला दुष्ट हो, मानो जिसने मण्डल की रचना की हो ऐसा राजा हो जो शत्रु के तीर की तरह लाल-लाल नेत्रवाला है, जो मानो काल के द्वारा कालपाश की तरह फेंका गया है, जो मानो दूसरा यम है, इस संसार को निगलने के लिए ऐसा दहाड़ों से भयंकर महानाग उसने देखा।
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घत्ता- उस पृथ्वीश्वर ने प्राण हरनेवाले उस साँप को उसकी मजबूत पूँछ पकड़कर आकाशतल में घुमाकर शीघ्र ही पृथ्वीतल पर पटक दिया ॥ ४ ॥
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वही सर्प असु और गजघण्टारूपी रत्न हो गया जिससे युद्ध में चतुर शत्रु-योद्धा जीते जाते हैं। अँगुली में अँगूठी पहना दी गयी। एक और शत्रु पुरुष वहाँ अवतीर्ण हुआ। उसने कपट से प्रणाम कर कहा कि यदि आप इस वज्रमय मुद्रा को लेकर इन रत्नों को नष्ट कर दो तो मैं समझँगा कि तुम त्रिभुवन को उलट-पुलट सकते हो, तब उसने उन रत्नों को नष्ट कर दिया। उससे दुर्जनों के नेत्र बन्द हो गये। लोगों ने 'सिद्ध हुए' कहकर नमस्कार किया और जिन्हें ऐश्वर्य-धन दिया गया है ऐसे उन लोगों ने उसे माना और उसकी प्रशंसा की।
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