Book Title: Adi Purana
Author(s): Pushpadant, 
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 659
________________ सुहाकिंसनननंघा महानिर्मुलाकिंदासंतिवलायापतिनामध्यमालाउघुलंतर किसखावईसविचित्रशेनेपियतारणश्यविनइंजिवतजनक्षणमंदिरलग्नाना पाकिमहराउधनेनिसन्त पाण्णांगण्यावविपनदेवणानवलपरमगणना। एक्लुवसश्चलताशदीप यमववतविमिविवरियई जहिजमिलियनतर्दिशवदारिख। पलणपिटायमुहलेकिंजावन कहाकुमारिएकुनिवसस्ट सहिसडसडससिलदाविरहार हगंधवाहरुपलचित्रहहं साहरिचरखननामरिक विचलुमणुणाममुपिंदवाचता निडरियनमणनिर्मासमडलरकपलरकविसिहनमुणिमसखुशखरविदउमरु गण्डयावरुदि इलाशाधानका खरखरख्यधामरगयनिहत कयाविधाजणु वंदिरणयणउसयुए वनगनुदसणसयकसरिटामरिसहरु सुवणधिमसिलिहिलिसहें वहरिदसदिसमग्निर, यामिम नवरारिदिंचवलमईदंणसारंगठधरिटाचरंगकमपिंजरुचलुपसरिसकका अवलवायुपुत्रारूदारासहपालिलावग्नश्यालिनचवलोपविकसुहरिद्वयावर लिन्मकाएं खासंघार्ग पर दिदमंगलघुहठकलयखुरातातिोडशिविमहिवश्वलवला अहिवलणसुखमा वरचंदणपरिमलचंदमुहि चंदलदतहादिमाशचंदलेहयानलेविणि कि हे सुखावती, बताओ कि क्या आकाश में ये शरद् के बादल हैं? वह कहती है-नहीं-नहीं, ये आकाश को छूनेवाले घर हैं। क्या ये आती हुई बलाकाएँ दिखाई देती हैं? नहीं नहीं ये हिलती हुई ध्वज-मालाएँ हैं। तीखे खुरों से धरती खोदनेवाला, मरकत के समान शरीरवाला, लोगों को कैंपानेवाला, लाल-लाल हे कल्याणी, क्या ये रंग-बिरंगे इन्द्रधनुष हैं ? नहीं नहीं, प्रिय, ये पवित्र तोरण हैं। क्या ये नक्षत्र हैं ? नहीं- नेत्रोंवाला, टेढ़े मुखवाला, दाँतों से भयंकर, शत्रु के क्रोध को चूर करनेवाला वह घोड़ा दौड़ा। विश्व का मर्दन नहीं ये रत्न हैं, या नगर की आँखें मन्दिर पर लगी हुई हैं। क्या ये धरती के अग्रभाग पर आकाश स्थित है? करनेवाले कुमार ने लिहि-लिहि शब्द के द्वारा दसों दिशाओं को बहरा बनानेवाले और युद्ध का बहाना नहीं-नहीं, यह नागनगर फैला हुआ है। हे देव ! यह नागबल नाम का राजा है। बलवान् और अदीन इस खोजनेवाले उस घोड़े को उसी प्रकार पकड़ लिया जैसे सिंह हरिण को पकड़ लेता है। और फिर अपना नगर में रहता है। इस तरह बात-चीत करते वे दोनों वहाँ उतरे जहाँ लोगों का मेला लगा हुआ था। प्रियतम केशर से पीला चंचल हाथ फैलाकर फिर उस पर बैठा हुआ अपने बाहुबल से प्रबुद्ध राजा ने उसे प्रेरित किया। पूछता है-क्या यह कोई जनपद है? कुमारी कहती है-यहाँ पर हय (घोड़ा) निवास करता है। जिन्होंने राजा के द्वारा लगाम से चालित कोड़ा देखकर वह घोड़ा वश में हो गया। पुलकित शरीर विद्याधर-समूह शशिलेखा का असह्य विरह-दुःख सहन किया है, ऐसे गन्धवाह रूप्यक और चित्ररथ का वह अश्व राजा ने मंगल शब्द को प्रकट करनेवाला कल-कल शब्द किया। से पकड़ा नहीं जा सकता, उसी प्रकार जिस प्रकार कुमुनि अपना चंचल मन नहीं पकड़ पाते। घत्ता-तब राजा अहिबल ने उसे अतुल बलशाली राजा समझकर देवताओं के रंग की तथा सुन्दर चन्दन घत्ता-डरावने नेत्रों और बिना मसोंवाला लाखों लक्षणों से विशिष्ट और लोहों के नाल से रचित से सुभाषित अपनी चन्द्रलेखा नाम की कन्या उसे दे दी॥२॥ खुरोंवाला विशाल वक्ष का वह घोड़ा राजा श्रीपाल ने देखा ॥१॥ चन्द्रलेखा से पूछकर वह चल दिया। For Private & Personal use only Jain Education International www.jainelibrary.org

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