Book Title: Adi Purana
Author(s): Pushpadant, 
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 658
________________ यरिउजशविर्दततणधरिखतगणदेवरमणियम्युलिकरुयुतणुसणंतमलिहचालित जाणेपिपन्नधारिसपूवरू परिहरिविअणसारुसमा करिणादरवंथविडाका हरविकरहिनदिधनियतहिंजहिंधश्वटरवईसोपलणंखलनपसनमश्कतावामिया सुकतरमणारशकतासिरिकता मदणवणमालावालहसुद्धाजवळ जामायनमहाजियासुमसहा श्य लपविधरिपझ्झारियन पुरन नारिजलकारियालाघता। करिखसनिवहट कतिसपिछल रहसमणसविणायासिंह पिंजरू श्राजाजरा पुष्पा दावा यशाळाध्यमहाचराग तिसहिमहाप्चरिमपुणालकाराम हाकश्प दंतविरयामहा। इतरहाणुमरिणामहाकड। सहाकरित्यारागलसेन मचंदतारमापरिननसमतारा समिक्षा तिसरतस्पनिमश्वरसामायिकासरामणेरणावह माववाहिताधलक कस्पातिसमणीकाक्रवकनाचखनिधिविखवरह तिजंयतमलादेन राणउताहिं होताच वहरिवि निमसदावश्वनएला चंडकिरणकरदिनालिगणेपुलपिउगलंकणहंगणे का ३२० इस प्रकार त्रेसठ महापुरुषों के गुणों और अलंकारों से युक्त इस महपुराण में महाकवि पुष्पदन्त मदरेखा की शोभा से परिपूर्ण उस हाथी को जब राजा श्रीपाल ने युद्ध करके पकड़ लिया तो आकाश द्वारा विरचित और महाभव्य भरत द्वारा अनुमत महाकाव्य में महाकरिरत्नलाभ नाम का चौंतीसवाँ से जिसमें चंचल भँवरे गुनगुना रहे हैं, ऐसा सुमन समूह गिरा। उसे प्रबल उच्च पुरुष जानकर तथा विश्व परिच्छेद समाप्त हुआ ॥३४॥ भयंकर युद्ध को छोड़कर उस हाथी ने उसे अपने सुन्दर कन्धे पर चढ़ा लिया। और विद्याधर के अनुचरों ने उसे नमस्कार किया और वे उसे वहाँ ले गये जहाँ विद्याधर रहता था। रोमांच से प्रसन्न बुद्धिवाले उस विद्याधर सन्धि ३५ राजा ने कहा कि अपने प्रिय पति से रमण करनेवाली कान्तावती की प्रिय मेरी रतिकान्ता, श्रीकान्ता, मदनावती, तब विद्याधरों की आँखों को अवरुद्ध कर तीनों लोकों में श्रेष्ठ सौन्दर्यवाली वह सुखावती कन्या वहाँ वनमाला कन्याएँ हैं। तुम उनके वर हो और कामदेव को जीतनेवाले मेरे दामाद। से ले गयी। घत्ता-कान्ति से स्निग्ध वह महागज खम्भे से बाँध दिया गया। भरत और स्वजनों के लिए विनीत सिन्दूर से पोला, फूलों के समान दाँतोंवाला वह गज मानो दूसरा दिग्गज हो॥१३॥ जिसमें सूर्य की किरणों से आलिंगन किया है ऐसे आकाश के आँगन में जाता हुआ प्रिय पूछता है Jain Education International For Private & Personal use only www.jaine639org

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