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रितिरोडकरसा पिसणुकोश्संगहणुधरेसश्लश्श्रालिंगिविमुक्कनिबंधणु लमहासंवरिटर यश्वश्रासकिरमणकिकरकीलजसथमाउनाश्ऋषअपजश्काशवर्मतज्ञता परयालिणियमणेचितश्पयहिंसविवेयहिंहउजाणिड एबूहिकहिचमिसदाणित हलवपर लवडलागारपरलियमपहावस्यारेउजादिमश्छामपरघरसामिाणानबासरतजशवस। एकामिणि रमणामपपररमणलेहए तंनिमणिविहभारिएङद्दा नरमाइपियसहिवणेमेलि
यसाहिसाहिसार्किदिविघल्लियाचना थरहरिस्पाणिपासिकमलविद्यमालेसहणिणिया श्रीपालप्रतिज
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सारिउसोवमसिलायलासणिणिणिजखडकला। हाहपतिमाश्यामावर जमिहातीपाडलाश्यमय वपिपुणेक्षपयासें वालपसाहिउकरसेफासें सुरणितिष्ण
पिघालसुणंहन तणउपवताईर्सवहारअरिसविविहम।
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ऊपर डाल दी। वह गृहद्वार को निरुद्ध करता है और दुष्ट किसी पुंश्चल जोड़े को पकड़ता है। ऐसा वह शीघ्र उठता घत्ता-जिसके हाथ-पैर और सिररूपी कमल थरथर काँप रहा है, ऐसे उस गिरते राजा को संकटकाल है, आलिंगन करके कण्ठश्लेष छोड़ता है। वह शीघ्र उठता है और अपनी धोती पहनता है। इस प्रकार में सुरभव की पुरजनी ने अपने हाथों में ग्रहण कर लिया॥१०॥ आशंकित मनवाला वह क्या क्रीड़ा करता है ! केवल अपयश के धुएँ से अपने को कलंकित करता है। और वह यदि किसी दूसरे से मन्त्रणा करता है तो परस्त्री-लम्पट अपने मन में विचार करता है तो यह कि इन उसे स्वर्ण-सिंहासन पर बैठाया, उसने कहा-सुनो, यक्ष कुल में उत्पन्न हुई में पद्मावती, हे पुत्र ! हंस विवेकशील लोगों द्वारा मैं जान लिया गया हूँ। इस समय अब 'मैं' किसके सहारे बचूँ ? इस प्रकार परस्त्री की तरह चलनेवाली तुम्हारी माता थी। यह कहकर स्नेह को प्रकट करनेवाले हाथ के स्पर्श से बालक को का रमण इस लोक और परलोक में दुर्नय करनेवाला तथा अत्यन्त विद्रूप है। यदि परघर की स्वामिनी, रम्भा, सज्जित किया। उसकी भूख, निद्रा और आलस्य नष्ट हो गया। उस सन्तुष्ट बालक से उसने कहा-विविध उर्वशी और देवबाला भी हो तब भी मैं उसे पसन्द नहीं करता। यह सुनकर दूसरे के साथ रमण करनेवाली प्रकार के किरणों से भरपूर गिरिगुहा के विवर में तुम प्रवेश करो। यह सुनकर राजा वहाँ गया। इतने में यहाँ उस विद्याधरी स्त्री ने क्रुद्ध होकर श्रीपाल के साथ प्रिय सखो को बन में भेज दिया, और पेड़ को डाल काटकर संग्राम से धूमवेग भाग खड़ा हुआ। शर-जाल को सज्जित करती हुई उसके लिए दैवी वाणी हुई
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