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श्रीया लुसुषा वती सेती कथनच ॥
सहि अप्पापड पारणापयासहि । तेन पुरुमहिमर गोरु कुहिनुकं कहिंसो महामुला नक्तिदविणः चलियन जेवलासहि। मह वाहिलदेवाहिणिविसहि चारा सहसा लगियमही से ना समिरोपाणिसं परिसंघचा नवस्त्र लविषय पिपुल चली तो गलकदलय जाणियतेवि मायाविणिय शाहखयरिमय वपि॥ २२॥ ककुमारुम राम हन वा लहि होहो के विमख लियारहि कश्वगणकिंपि श्रापण्डू सज्ञावेणमधिनविण
नाजस्तू उविमुकनकमय (उत्तन को मल सोमलवस्मय लोलो नियुणिनेरसर निस्कट पुविदेदश्वमश्रकल तधायक लहोयमही हरु तहिंगयउरनिवसश्करिकर करू उकंप एक्जिाहरव५ ससिपहोदिणि सहा व पालुवा पयले सिद्ध सागवानामद्रण सिद्धाने हरणादहिमि लिविमणिदर मड विज्ञाय पहु निवडन को वरुत्ताम सकिनु अग्रचरू तेपविकहिनुहु चक्केसरु अवरुविनियणिदेवदहल कछाश्वस इहेलणासलु तहि मेहरण्मय |गलगामिणि कंपपुखगवश्धरिणिविमापिणि ताई पुत्तिवम्पिल भड पियसहि नंगोमिणिरम ३०
तुम्हारा नगर धरती निवासी के लिए अगोचर है। कहाँ तुम ? और कहाँ तुम्हारा भाई ? धन नहीं है, यह तुम झूठ कहते हो, तुम झूठ मत बोलो। तुम मेरे बाहर की व्याधि नष्ट कर दो। राजा ने कहा- मेरे पास आओ और उसने अपने हाथ के स्पर्श से उसका रोग दूर कर दिया।
घत्ता - नव-सौन्दर्य से उल्लसित होकर रोमांच को प्रकट करती हुई वह उसके गले में आकर लिपट गयी। उसने भी जान लिया कि यह मायाविनी कोई विद्याधरी है जो कामदेव से आहत हो उठी है ॥ २२ ॥
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कुमार कहता है कि हे देवि! अपनी भौंहें मत चलाओ। अरे-अरे तुम मुझे कितना अपमानित करती हो ! तुम कपट से प्रिय को क्यों अर्जित करना चाहती हो। निश्चय से सद्भावपूर्वक तुम इसे छोड़ दो। तब कन्या
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ने अपना वृद्धरूप छोड़ दिया और कोमल श्याम रंगवाली उसने कहा- हे राज-नरेश्वर! निष्कपट बात सुनिए ! पूर्व विदेह में पुष्कलावती नाम की नगरी है। उसके राजपुर नगर में जिसने स्वर्ण के समान महीधरों को धोया है ऐसा हाथी की सूँड के समान हाथोंवाला अकम्पन नाम का विद्याधरों का स्वामी राजा है। उसकी 'शशिप्रभा' नाम की कन्या है। वही मैं भुवनतल में इस नाम से प्रसिद्ध हूँ। ऐसी कोई विद्या नहीं है जो मुझे सिद्ध न हुई हो। समस्त विद्याधर राजाओं ने मिलकर स्नेह के साथ मुझे विद्याओं को जीतने का पट्ट बाँधा है। पिता ने मुनिवर से पूछा कि इसका कौन वर होगा? उसने कहा कि उसका वर चक्रवर्ती राजा होगा। हे देव ! अब और भी सुनिए। तुम्हारे शुभ फल की कच्छावती धरती पर रत्नाचल है। उसके मेघपुर नगर में कम्पन नाम का राजा है और उसकी हाथी के समान चालवाली मान से रहित गृहिणी है। उसकी लड़की बप्पिला मेरी प्रिय सखी है जो मानो पृथ्वीरूपी (लक्ष्मीरूपी) रमणी की
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