Book Title: Adi Purana
Author(s): Pushpadant, 
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 652
________________ लिए माकरदिचिनुचडिमाणमए तंणिसुणिविसापल्लहता निमिणपराया नियधरुसूद गदसधुसमासिद नश्याविजलोदिउसोसिदा साहमिडिपरिनहिल पहुचमारिए समिहिम हरिबनदहश्ससंकज संजपसचिवहोतणमल महसमहरुभिासपाईपहर अवतजादिपोढिमवहश्वसनिमजासविटाणियाजर्दिदासप्तहिजिसलरकाणिवाचनात हिताणदायमालए चलससलालय सहादतएएपायावा जसुघरिणिसहावहिवरावश्तासु डखकहिंधावपातिणिसपिसूयामितियोजियाळ कापयतिजसविउल्लिम सिखिालकाण तरुवरवाहे सामहपहपहावरह पाहणंदणवणसठियदापरणाइपरसोनवंठिय सुश खसहायहोइमियण हटवसुमहिमायाखुझिमय चितवमारुमणिमणमहहो मग्नपापडी तिविम्मदहो पाश्कामगहिल्लिक्षण तापहासदिसबंधळखिया लखपपमाणमाणेमविन कपासूसतहोनिमाविल धितचिंताठलुसुग्रणयसवियसपासमूटममडकपकमारिए। उठविठविपमहायुकिहमंसदिल वागतरुनियष्पिण महिलसणेपि सहमटोसया निगोनदिवासरवनिक्लिामर विजाहरतहोलानामा एकहिलिसिणिहिदाईसवर एकदिकिस ॥ कलिदहिहोसमरजहानिहाउनघण्यदक सहसंघनविनवसमसह एकतिरूपिहितिविम तुम व्यर्थ अपने चित्त में अभिमान बुद्धि मत करो। यह सुनकर वारिसेन लौट पड़ा और पलमात्र में अपने आहत कर दिया। वह कुमार अपने मन में सोचता है कि क्या मुनिमन का नाश करनेवाले कामदेव के ये तौर घर आ गया। थोड़े में उसने अपने लोगों और बन्धुओं को बता दिया कि किस प्रकार बावड़ी और नदी का पड़ रहे हैं। पति में अनुरक्त पूर्व की वधू में अदृश्य रूप से युक्त उसका (श्रीपाल का) लक्षण और प्रमाण से जलसमूह कुमारी ने सोख लिया और स्वयं पृथ्वीनरेश (श्रीपाल) को ग्रहण कर लिया है, और मुझे यहाँ । युक्त कन्यास्वरूप बना दिया। जिसकी मति संचित संशय से मूढ़ है, ऐसा चिन्ताकुल वह भुवनपति अपने मन भेज दिया है। में सोचता है कि मेरा यह कन्या रूप किसने बना दिया? बिना अंगूठी के यह दुबारा कैसे सम्भव हुआ? ___घत्ता-उसकी चंचल भ्रमरों से सुन्दर मालती से राजा को भूख और प्यास नहीं लगती। जिसकी गृहिणी पत्ता-उसके उस रूप को देखकर और महिला समझकर, असह्य कामवेदना से नष्ट (भग्न) अपनेसुखावती हृदय को रंजित करती हो उसे आपत्ति कहाँ से आ सकती है? ॥४॥ अपने गोत्रों के दिवाकर दोनों विद्याधर भाई उसके पीछे लग गये ॥५॥ यह सुनकर स्वजनों ने कहा कि इस लड़की ने तो तीन लोकों को उछाल दिया है। श्रीपालरूपी कल्पवृक्ष जिसका पति है, ऐसी सुखावती ने अपनी सामर्थ्य का डंका बजा दिया है। यहाँ पर नन्दनवन में स्थित वारिसेन के लिए राजा उत्कण्ठित हो उठा। सहायता का स्मरण करते हुए उसे उस दुर्जेय माया की कुब्जा ने फूलों से एक कमलिनी लेकिन उसके लिए दो-दो हंस, एक दुबली-पतली कली उसके लिए दो-दो भ्रमर यदि होते हैं तो यह होना घटित नहीं होता। केवल कामदेव वेधता है और सर-सन्धान करता है। क्या दो-दो आदमी एक तरुणी के 633 www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal use only

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