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लवाविहिधिवशतामुक्वनिरिखिदातेपकिहानिनेहविलासिणि कालजिहाधना दूणियादेशमायालश्जमतसए वायझलक
सत्पुटादवले परापरामवसन्तयतले खगकोलाहलेजविश्वासाणना
वश्व विज्ञाहरणासासियउ तहिंजाइविषक सावियन हि डिदिदेवयससवणुमावाहवित्राणनसिसिरुवण श्यसविधा।
सवाहिाणेसरियगउदिसणपाणिमलरिया अश्यावहथदारा श्रीपालक ऊया
पुक्तापुजअणुहरियसाविमा जलमगया।।
याणियहरायाहिरादादलियावश्एसोसिडकमारासुद्धावण पिर
आइविमालएताडियउ ताहाकिलयुनिहाडियार अलहंइसलि लुधियडसहा वायउसरसेणुसरीयरहो हमकाएबोला विज अदकेगवणवहाविनठावाखरतावविभासें निषिी
ससोकलवमलवकूदाई असिलहिवदीसशकिंकिरसीसशनिए व्याणिनननहोसाकयाविनश्यहरमणुपरंजाहिचरिखसपिडसिमश्यहोरिटडानबर
कमल वापिका पर दृष्टि डाली वैसे ही उसे (वापिका को) उसी प्रकार सूखा देखा जिस प्रकार कि विलासी राजाधिराज राजा श्रीपाल को आपत्तियों का दलन करनेवाली सुखावती कन्या ने उस नदी को सुखा दिया। वेश्या की स्नेहहीन क्रीड़ा हो।
उसने जाकर प्रिय को मालती की माला से ताड़ित किया और उसके प्यास की पीड़ा को नष्ट कर दिया। विकट घत्ता-असहा शरीर की उष्णतावाली, प्यास से सन्तप्त तथा दौड़ने के आवेग से श्रान्त कुमार श्रीपाल' और उद्भट नदी तट से पानी न पाकर वारिसेन लौट आया। तब प्रच्छन्न कन्या (सुखावती) बोली-तुम सप्तपर्णी के पत्तों के नीचे पक्षियों के कोलाहल के बीच जब बैठा हुआ था॥२॥
बेचारे किसके द्वारा प्रवंचित हुए हो? ॥३॥
वहाँ विद्याधर ने जाकर उसे आश्वासन दिया और कहा कि हे देव! तुम डरो मत, मैं शीतल जल लेकर आता हूँ। यह कहकर वह गया, और उसने वेग से बहनेवाली पानी से भरी हुई नदी देखी। लेकिन वह नदी तुम अपने सुन्दर घर को किस प्रकार पा सकते हो, तुम फौरन चले जाओ मैंने कह दिया। इसका शत्रु भी, जिसने हरिणों के लिए अत्यन्त वितृष्णा उत्पन्न कर दी है, ऐसी मृगमरीचिका के समान दिखाई दी। यदि अजेय है, तो
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