Book Title: Adi Purana
Author(s): Pushpadant, 
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 648
________________ नुक्सवामेकमलाप पिंडुसोहणिपासोवपपिंडासापुसिलाय रामहसुनिसिसि उपविष्टः श्रीपाल बादलयलेण्यहंस अश्वलुणामपरिखसश्नेकु विज्ञाहरुविना वलसमछु नवम्मडाबहातणिसणातहोघरिणिकसीलिचि बसेण मुंहकहरुलयफसरकरणा सासरिणिनिसिगरदिव रेण आगयपिठेवणहोतहिमिलाणु दिहलसिहिमुहणिणत माए चितिउश्रणायजमलकिरोड मपलियमहातपाउड्डा जोएवाकारणेण काश्विसबंधुवियारणण श्यसपिविमहिलकोहलपा सहिंसापविडण वरापलेपापनदहाजालावारिएणासवोसहिासनवारिपणा नासरविणिसामाणिवदापासोत्र वश्यउतापिनवनिवायोअश्वखगहिणिचयापडिठहमदबहिनिमुदिपविठाबा विहिकंतवजनिकल नाचवश्धुतिसंसरिविहेदाचा हक्कारहिनिबंधादीवुधरप्पिणगछर मिश्रसयतपयकलकामशलियकेतिळमिथितामहिलासविसलेणामुलावियो। धवनश्यलेप मवविहासरिणिधगधगधङववसहवित्ततासातणनदहाकर्हिविक्रेता मायाविणिवसविडणजे वंदिखलाएगमहासाध्या हलसिहिसायलुसुहमईहाडेबार बह स्वर्णपिण्ड के समान शोभित है। वह राजहंस शिलातल पर बैठ गया मानो कमलिनी दल में राजहंस पर गिर पड़ा, और बोला कि मैं मूर्ख बुद्धि दुष्टों द्वारा ठगा गया। हे प्रिय ! आओ, हम घर चलें। तब कारण हो। उस नगरी में अतिबल नाम का विद्याधर रहता है जो विद्याबल से सामर्थ्यवाला है। उसकी चित्रसेना नाम का विचारकर वह धूर्त बोलीको दुराचारिणी स्त्री ऐसी थी मानो कामदेव की सेना हो। जिसके मुखरूपी कुहर से कठोर अक्षर निकल घत्ता-अपने भाइयों को बुलाओ, मैं दीप धारण करके जाऊँगी। क्योंकि असतीत्व के मल से मैली में रहे हैं ऐसे विद्याधर पति ने उस स्वेच्छाचारिणी पत्नी को रात में डाँटा। वह उस मरघट में आयी। उसने राजा (बदनाम) होकर कब तक रहूँगी? ॥१२॥ श्रीपाल को आग के मुँह से निकलते देखा। उसने विचार किया कि विजयलक्ष्मी के घर इस राजा का शरीर १३ आग में नहीं जला तो इसके लिए कोई कारण होना चाहिए। अथवा इस कारण का विचार करने से क्या? तब स्त्री प्रेम के रस से व्याकुल अतिबल विद्याधर ने भाइयों को एकत्रित किया। वह स्वेच्छाचारिणी यह विचारकर वह महिला कुतूहल से उस आग में घुस गयो। जिसकी सवौषधि से शक्ति आहत हो गयी अन्धकार को नष्ट करनेवाली धक-धक जलती हुई उस आग में प्रविष्ट हुई। उस आग में वह उसी प्रकार है ऐसी ज्वालाओं को धारण करनेवाली उस विशाल आग से वह जली नहीं । वह निकलकर उस राजा श्रीपाल नहीं जली जिस प्रकार मूर्ख के द्वारा मायाविनी वेश्या दग्ध नहीं होती। लोगों ने उसकी बन्दना की। के पास आकर बैठ गयी। तब मरघट के निवास में विद्याधर अतिबल आया और अपनी पत्नी के चरणतल शुद्धमतिवाली इस महासती के लिए आग ठण्डी हो गयी। Jain Education International For Private & Personal use only www.jain-629org

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