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हे विजरनु आणिसमये निजसिरिवरक दिवस हावय थिमपुपुपनन्त्री माकमारि डलकचारुदे यविरि वर जापदंसण रमा हे गेंदरिसिनतरियादे तापविसोजोइन नियमामाज पहा लोखवश्यतहिपारसुहासु बुहहे। उप्यरिपेमादिलास, हलिअसणि वेल ससिका करहिं लगन व वाण शुरूको विचरहि ॥ धना ताखा रायस्यो हि वलुमहेसरुन निरर्लका रुजिर्लिंड साल कार हिसार हिरावयविव चंचल चित्र हिंगिरिथविरचित विहरतेनहिंतवचरणतचं मिगणेनाद।। आाणतिलाने मझेखा यदिसंखाणपाठ यहळणीहिंग चढला 3. कुडिलालादिकडिलमाइल जणमणसलिहिंनिक सल्ला महचारक मिश्रमं दरदरी दि वंदेविपरमेसर सुंदरी कि। अदिसेनक्ल उज्ञापयारुतादक | नामकुमार संपन्न उस निमपरियणेप धेरेपरिश्चिम श्रणेण श्राहरण विसेस हि विष्णूस किंवा व नरमेल सुरं ताइसे विप ऋठक केकेणविदा विज्ञारुये। इहायवतेरेतिमिराज निवसश्रविपलकंतासहा 3. सुत्रतासु पहाव जेहुपुत्र सिनामंगुण मंडषु निउनु पयद्देयमिहिरुजतसारणे वहरुविर
श्रीपालु सुषाव तीष्टहरूपधस्या विकीउ श्राया
वृद्ध ' श्रीपाल' की बुद्धि को जाननेवाली सुखावती ने अपनी श्री उसे दिखाई फिर वह कुमारी छिपकर बैठ गयी। और दुर्लक्ष हैं आचरण जिसका ऐसी वृद्धा बनकर बैठ गयी। उसने दर्शन में लीन विद्युतवेगा के लिए भौंह के द्वारा वर को दिखाया। उसने भी उससे कहा कि प्रिय कामदेव हैं। लेकिन मायावी बुढ़ापे से उसके अंग छिपे हुए हैं। तब भोगवती ने वहाँ मजाक करना शुरू किया कि तुम्हारी प्रेम अभिलाषा वृद्ध के ऊपर हैं। हे विद्युतवेगा । सखि तुम क्या करती हो। शीघ्र ही किसी युवक लड़के से अपनी शादी कर लो। धत्ता-तब विद्याधर की कन्याओं ने अलंकार पहने हुए स्वयं ब्रह्मा, महेश्वर, आदि जिनेन्द्र की संस्तुति की जो स्वयं बिना अलंकारों के थे ॥ २ ॥
चंचल चित्तवाली, पर्वत के समान स्थिर चित्त जिन भगवान् की विरह से आर्द्र सन्तप्ताओं ने तपश्चरण से सन्तप्त जिनवर की, मृगनयनियों ने ध्यान में लीन नेत्रवाले जिनेन्द्र की, मध्य में क्षीण स्त्रियों ने पापों के क्षय करनेवाले जिनेन्द्र की, स्निग्ध स्तनोंवालियों ने स्नेह से रहित जिनेन्द्र की, कुटिल आलाप करनेवालियों ने अकुटिलों में श्रेष्ठ जिनवर की, जन-मन की शल्य रखनेवालियों ने शल्यों से रहित जिनवर की तथा इस प्रकार अपने आकाशगमन से मन्दराचल की घाटियों का उल्लंघन करनेवाली उन सुन्दरियों ने परमेश्वर की बन्दना कर अभिषेक और तरह-तरह की पूजाएँ कीं। इतने में बंकग्रीव नाम का कुमार अपने परिजनों के साथ वहाँ आया । इस वृद्ध ने उस वृद्धा से पूछा कि विशेष अलंकारों से चमकता हुआ यह मनुष्यों का मेला तुरन्त क्यों दौड़ रहा है? तब उस वृद्धा ने हँसकर कहा कि विद्या के आकर्षण (कान्ति) से कौन-कौन लोग आहत नहीं हुए। इस भोगवती नगरी में त्रिसिर नाम का राजा है। उसकी सहायक रविप्रभा नाम की पत्नी है। उसके उस लाल-लाल ओष्ठोंवाली (रक्ताधर) उन्होंने सैकड़ों संसारों से विरक्त जिनेन्द्र भगवान् की संस्तुति की। रविप्रभा से बड़ा बेटा हुआ, शिव नाम का गुणों से मण्डित, रात्रि में जिसमें कुत्ते भौंक रहे हैं, For Private & Personal Use Only
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