Book Title: Adi Purana
Author(s): Pushpadant, 
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 640
________________ सहिसामछुप्तरूपेणापयासिउ कयममुहावश्याए नियखट्पयासिममा संसाहिताविज्ञासाए । हुण्ण कामलकखालसंफासणेपानद्दामकामकामपामईहविणियनुजहासहावह वन्ति वितारुमालकियारखगकपण्वदाणाजपिया उलंदेठमहारडपाणहराईवकपाणिसमम वविद्याविज्ञाहापिसुपतिछानकरखनपविनमशवितव मडकंचुञ्चेसहारिणहि चट्टा धण्मयड्दारिणा धरियरड्सविविवाहुअादेहिजाईतसिहरुडुतचिोडहीनपावार्थ श्रीपालकवि बामालाहत्यजन्नधान्यानाककालवालावरया द्याकाक्षश्करिले अवलोयदिखयरवश्ययाउ ताक्षरोटाकियनतणासाविद्धाय चवलचल्लियाहगाउबंधिविश्वहिणहंगण्ठसंपठानपहर पंगणाघना वेदियतिअणणायात्रसामग्घुश्चचिन्नि विबुहतासहसालयविहज्ञाशाखामवश्सडाराविजनेय ताहिदकावपिलनिरुवमेय ममणवश्समागायमयपालाल रहरम पिडूकरीणाश्कील अपानमगारसवापियाठकपाशवशमानजसरिखुमसिरकेसासि। यावारिहिथेकर्ससासियाईअवललवितरूपिहितणिमरिदिसणुकंचाधिनविसमतवधि ३१ सन्धि ३३ उसके कन्धे पर आरोहण किया। बिजली की तरह चंचल वह आकाश मार्ग से चली। नभ के आँगन को लाँघती हुई, वह तुरन्त जिनेन्द्र मन्दिर के प्रांगण में पहुंची। उस तरुण श्रीपाल ने अपनी सर्वांषधि की सामर्थ्य प्रकाशित की। सुखावती ने जो उसका बुढ़ापा किया घत्ता-उच्चरित सैकड़ों स्तोत्रों से त्रिभुवन के स्वामी जिनेन्द्र भगवान् की उन्होंने वन्दना की, और वे था उसने उसे नष्ट कर दिया। जिसने विद्याओं के शासन को सिद्ध किया है ऐसे श्रीपाल ने अपने कोमल करतल दोनों बूढ़े मन्दिर की मुख्यशाला में बैठ गये ॥१॥ के स्पर्श से उद्दाम काम की इच्छा की मति (बुद्धि) रखनेवाली उस सुखावती के बुढ़ापे को भी नष्ट कर दिया। वे दोनों यौवन से अलंकृत हो गये। विद्याधर कुमारी ने ये शब्द कहे-हे देव! तुम मेरे प्राण-इष्ट हो, तुम साक्षात् विष्णु हो। दुष्ट विद्याधर जिस प्रकार दूसरों को मारते हैं, कहीं वे तुम्हें और हमें न मार दें! इसलिए आदरणीय भोगवती, विद्युतवेगा और अनुपम बप्पिला वहाँ पहुँची। कामदेव की लीला धारण करनेवाली शुभ करनेवाला कंचुकी का वेश धारण कर मेरे कन्धे पर चढ़ जाइए। ऐसा रूप धारण कर आओ, विचित्र मदनावती आयी। जो मानो रतिरूपी रमणी की क्रीड़ा हो, और भी मनोहर वर्ण की रंगवाली आठ कन्याएँ शिखरोंवाले उस सिद्धकूट पर्वत पर चलें। वहाँ युवाहदय-पीन स्थूल स्तनोंवाली तुम्हारी प्रणयिनियाँ आज वहाँ अवतीर्ण हुई। वृद्धतारूषी नदी से धोये गये हैं केश जिसके, ऐसे उन वृद्धवृद्धा से उन कुमारियों ने मिलेंगी। अशोक वृक्ष के नव-पल्लवों की तरह बाहुवाली विद्याधर कुमारी को वहाँ देखोगे। तब कुमार ने बातचीत की। उन युवतियों की ऋद्धि देखकर कंचुकी भी विस्मित बुद्धि होकर स्थित हो गया। २ Jain Education International For Private & Personal use only www.jain621.org

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