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ऐसे मरघट में विद्या सिद्ध करते हुए विद्या ने उसका कोटाग्र (गर्दन) टेढ़ा कर दिया है, और ज्वर के आवेग में वह योद्धाओं सहित अवतरित होगा। वह कुमार के कन्धे के टेढ़ेपन को दूर करेगा। और कन्या का मुख से इसका शरीर कँपा दिया।
चूमेगा, और भी वह शत्रुओं को मारनेवाले मण्डल को प्राप्त करेगा। तब वह धीर परोपकारी कहता है कि घत्ता-प्रणय से आकर बैद्य ने इसे औषधि दी। और बढ़ते हुए कुमार के वृद्धापन को छीन लिया॥३॥ मुझे कन्या से क्या उद्देश्य ? मैं धर्म से अपनी सामर्थ्य और सिद्धि को प्राप्त करूँगा। तब आचार्य ने उसे वैद्य
घोषित किया। राजा ने कहा कि पास आइए। श्रीपाल के निकट आओ। कमल के समान जब उसने हाथ
से उसे छुआ, जैसे ही उसने छुआ, वैसे ही उस लड़के का टेढ़ापन दूर हुआ। सीधी गर्दन का वह पुत्र मन्दिर लेकिन उसके कण्ठ का टेढ़ापन नहीं गया। पिता ने वीतराग मुनि से पूछा कि हमारे पुत्र का गला सीधा में गया, पिता उसे देखकर प्रसन्न हुआ। परमेश्वरी के घर के आँगन में जिन-मन्दिर में स्थित, दूसरों का काम कैसे होगा? यह सुनकर मुनिवर ने कहा कि संसार में जिसे सर्वोषधि विद्या सिद्ध होगी ऐसे तुम्हारी पुत्री कुमारी करने के लिए उत्कण्ठित किसी कंचुकी ने व्याधि नष्ट कर दी। मन्त्रियों ने यह पवित्र बात राजा से कही। प्रभावती के प्रियतम, उस चक्रवर्ती के छूने से लड़के की गर्दन के टेढ़ेपन का नाश हो जायेगा। 'जिनेन्द्र घत्ता-रची गयी कपट-माया के द्वारा जिसने अपनी नयी काया बँक रखी है, ऐसे उस दामाद के पास भगवान्' का घर जो सिद्धकूट नाम का प्रसिद्ध मन्दिर है वहाँ वह आयेगा। उस दिन से लेकर इस 'जिन मन्दिर' राजा चला ॥४॥
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