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मिनुवादासश्सानधनलिणमेव एकहिदिणगयरमाणमादिहमदाद्रिविमणिलवालियशव नलाठमाण्वपत्ति कोपावस्वहस्थसालसविनातिनुपुर छुह्यकियघावणिवासमण समाणधणवालहे बंधनण्यहे सायदकलापक्ष तोकराणश्रमिएणसिन्नगेदिपिनाने एकवेरमित तपसमांतरवड्यणमा हश्वपालसिमरवितणयामसुखासाकमापिकवा पिकला हसिगमणकलयविवाणि नादालिवलदासकासकस कामसस्लिपळसदेसानापियदन्नपसन्न
दिहिरणपदणाईसम्महचावलहि अम्नहिदिणकिसिमकसममालाक्यतायभामटाणलमालगना यदनानिपुष्क
सणिणुससुखजयसवयेसि पियकारिणगाजियरायहसि तयल्लनि। तालवशक्तीकश्य
न विशिमवतापुर एयविषाणुनसुइमा उत्तेवयएसुणविर विदेश्य
सासश्य मिलसम्हपसंसियधणवयाता पिसदनए सत्र सहमेवर माजलयुसंधुकियउ मालत जपजलतें अति।
मारुमुसुचियला जाणवितणवाकपाहिलासु वणिमा पापाखुविवाङ्गतासमंदावणेपहानणमणाज निघतावा पिनकलजकमजा ताबणारडतीससमारियाझानिस्चारकरारक
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नवनलिन नेत्रबाला बह कहता है कि एक दिन हम लोग उद्यान में गये हुए थे, वहाँ पर दोनों ने चन्दनलता- की धनुषयष्टि हो। दूसरे दिन उसने एक कृत्रिम कुसुममाला बनायी जो मानो कामदेव की शस्त्रशाला थी। कुंज में एक मुनि को देखा। वहाँ उसने एकपत्नी नाम का व्रत लिया है। तुम्हारे पुत्र की शीलवृत्ति को कौन अपनी गति से राजहंस को जीतनेवाली प्रियकारिणी सखी उसे लेकर ससुर के घर गयी। उसे देखकर वणिक् पा सकता है!
पुत्र विस्मय में पड़ गया कि मनुष्य इस विज्ञान को नहीं जान सकता। यह सुनकर स्वच्छ सती धनवती के ___घत्ता-चूने से पुते घरोंवाली उसी नगरी में कुबेर के समान इसी धनपति का बन्धु सागरदत्त नामक कुलीन द्वारा अपनी बहू की प्रशंसा की गयी। सेठ था ।। २२॥
घत्ता-कानों को सुख देनेवाली प्रियवार्ता से काम की आग धधक उठी। उसका मन लेते हुए, जलती २३
हुई आग ने कुमार को सन्तप्त कर दिया॥२३॥ उसकी अमृत से सींची गयी कुबेरमित्रा नाम की गृहिणी थी। दूसरे जन्म में प्रणय बाँधनेवाली अटवीश्री मरकर उसकी पुत्री हुई। मानो वह सुरति सुखरूपी मणियों की खदान हो, मानो कलहंस के समान गतिवाली
और कलकंठ (कोयल) के समान स्वरवाली हो। नीली भ्रमरपंक्ति के समान केशवाली वह मानो प्रच्छन्न पुत्र की कन्या में अभिलाषा जानकर वणिक् ने उसका विवाह प्रारम्भ किया। नन्दनवन में जनसुन्दर नगर
रूप में कामभल्ली हो। प्रियदत्ता नाम की प्रसन्नदृष्टि और गुणों से नत वह ऐसी लगती है मानो कामदेव और अपने कुलयक्ष की पूजा कर, उसने सुन्दर खाद्यों से भरे हुए बत्तीस पात्र फैला दिये। Jain Education International
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