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अणुसंपन्न परकहिंप पर दोहंदिमणिहिंगुणिदिजायतदं धम्मबुद्धि होउत्तिलणं तई रिसिपच्छे विउखमरे विमुक्ति महिदिपडं नरेहिंनियक्ति सलिलें सचिउ थियन साउ वरोपरड जेण वर विरनउ लाइपरिक किंकार परिणि कहिर श्वेयमहारी परिकणि सर सुकं तिष्ठणस सिकेत किड्जीवमिनि कसुकते॥घ सोहा पुरे ववरु एउचिक एवहिदपइनह यर लालतप्लोयविधरणिय ले कर चला गयमुणिवर ॥१॥ व सुमईएनवपंकयनेत्त्रय विनिविक्रियाए पियदत्रए चंचुपपह अम्मिसम्मिदियां दोहिमिंगयल वरणाम ईलिडियई महरिय देसुकं आणावि रवेयागमुखयर हो दावियन माविहडेवि चरदमदिष्णह विष्मिविसुद्ध अड्कंदह चयते पात्ताई पवित्र कचुतबले तियमन्नई रुप्य्यगिरिसमी बेमुख रागिरि करिदसण विरुद्धेरुंजिनहरि तेतद्विधावारणजश्वर जा यविथक्कतिणापदिवायर अमुयमइदितम इहिवि जायाबेस जई हि विहिता हिवि पुनिय ते कुसुमसरणि वारा पारावय से धुलडारा॥घ मार्ग वमिङपुल उत्तमरवि राव से कडे सं दाणि
आये, वे भक्त मुनि के चरणों की धूल अपने पंखों से झाड़ते हैं। दोनों गुणी मुनियों ने देखते हुए 'धर्मबुद्धि हो' यह कहा। ऋषि को देखकर और अपना पूर्वभव याद कर पक्षियों का वह जोड़ा मूच्छित हो गया। धरती पर गिरते हुए उसे लोगों ने देखा। पानी सींचे जाने पर जब वे सचेत हुए तो केवल एक-दूसरे के प्रति विरक्त हो उठे। पक्षी याद करता है पक्षिणी क्या करती है। मेरी प्रणयिनी रतिवेगा कहाँ है। पक्षिणी याद करती है कि पूर्णचन्द्र के समान कान्तिवाले सुकान्त के बिना मैं किस प्रकार जीवित रहूँगी!
धत्ता - पहले शोभापुर में यह वधू-वर थे और इस समय नभचर दम्पति हैं। धरतीतल पर पड़े हुए देखकर (इसे ) अन्तराय मानकर मुनिवर चले गये ।। १ ।।
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नवकमलों के समान नेत्रोंवाली प्रियदत्ता और वसुमती के द्वारा पूछे जाने पर दोनों ने चोंचों से लिखे
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गये गत भव के नामों को रख दिया। पक्षिणी के द्वारा अपना पति सुकान्त बता दिया गया, और पक्षी के लिए रतिवेगा का आगमन बता दिया गया। "अलग-अलग होकर मत विचरो, एक-दूसरे पर विरक्त मत होओ, दोनों ही काम का सुख भोगो।" इन शब्दों से वे दोनों पुनः अनुरक्त हो गये। वे कण चुगते और दूसरे पर आसक्त होते हुए क्रीड़ा करते हैं। तीन ज्ञानरूपी दिवाकरवाले वे जंघाचारण मुनि जाकर सुमेरु पर्वत पर विजयार्ध पर्वत के निकट, जहाँ कि गजों को देखकर सिंह उनके विरुद्ध दहाड़ते रहते हैं स्थित हो गये। अमृतमती और अनन्तमती भी और तीनों आर्यिकाओं के द्वारा भी जाकर कामदेव के बाणों का निवारण करनेवाले आदरणीय मुनिवर से पारावत के सम्बन्ध के विषय में पूछा।
धत्ता - जिस प्रकार से वह मानव-जोड़ा मरकर भवसंकट में पड़ा था
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