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सुवलेवम् राजापि
यकं कंचणवविसिवितायें उनमायाणिवरदेवं विक्कर शामातकिमारणको
उसिनवसंतई असावडविलियतईसादरविजय बावखुणिकरिवा
अखुकिंमार अजविसापकदिवविसरशाधना जिपम्हश पावेमारियांसोमबळगवसिउतपस्हणवालणादव
अण्डरसासिठा जविया तोविकिरणमय अश्वामिविखंसियमय जायश्वइदिवसरीइंअणि
मामहिमादिंगहीरवारवारलवसुकिलपसंसिसुरमिङ पणियहवपदसिकायवम्मखमलालझ्याउ दिछदिसबसपचवार
देवदेव्यापुत्रस्यस
वोधना झ्यागणियवासहासाखयरसरुक्क्षससिवधासजिणेसरुतवदा इसपनसरसरूहहदबणामवसरुशवकावसायकरसासख कसंथटससमेणातिककरतिणविश्वापडियाकपडसबा जासमिसमझतातादयरासयमदरामअवश्मठसमीणणामला जिणचक्केसघारपाटाइकिंघस्टाम्यावहाणवावड़समसरदरा किसाब नाजियदरिसिदमहरायठ कवलपाणपवेदिहा
स्वर्णवर्मा ने दोनों की भावपूर्वक वन्दना की। तब माया मुनिवरदेव ने कहा-“हे पुत्र, तुम कुपित क्यों हो, अपने रूप का प्रदर्शन किया। स्वर्णवर्मा ने क्षमाभाव धारण किया। और देव द्वारा दिये गये आभूषणों से अपने हम दोनों तो जीवित हैं। वह श्रावक राजा मुनियुगल को क्या मार सकता है ? वह राजा (गुणपाल) तो आज को विभूषित किया। वह विद्याधर राजा अपने निवास के लिए चला गया। वत्सदेश में शिवघोष जिनवर हैं भी हृदय में दु:खी है।
उनकी वन्दना के लिए देवेन्द्र आया। और अरुहदत्त नाम का चक्रवर्ती। और भी, वह अप्सरा तथा वह देव। घत्ता-जिस पापी ने हम लोगों को मारा है उसको तो सर्वत्र खोज लिया गया। हे पुत्र, गुणपाल राजा समीचीन उपशम भाव से उसने स्तुति की। जिनेन्द्र भगवान् की दिव्यध्वनि से जिनके कान रंजित हैं ऐसे सब ने अपने को शोक से सुखा डाला है ॥२१॥
लोग जब बैठे हुए थे, तभी वहाँ बाद में इन्द्र की शची और मेनका नामक स्त्रियाँ अवतरित हुईं। चक्रेश्वर २२
अरुहदत्त ने जिन से प्रकट पूछा कि इन्होंने कौन-सा गृहकर्म विधान किया है, अपने मुखराग को प्रकट यद्यपि हम लोग मर गये हैं तो भी मरे नहीं हैं, हम दोनों अमृत का भोग करनेवाले दिव्य शरीरवाले करनेवाला यह देवयुगल इन्द्र के साथ क्यों नहीं आया? तब केवलज्ञानरूपी दीपक से देखी गयी बात एवं अणिमा महिमा आदि से गम्भीर देव हुए। बार-बार उन्होंने संसार के पुण्य की प्रशंसा की, और उन्होंने
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