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देसिपक्ष अमहिंदिणतरणाहहोतणमें नडुनमालिनवतोरण घरायउनन्चाविनइहिदा रसविज्ञ मूहावसावसहिदा मुठिटाराविरयतिलंदामामपालमालाविलन मरणादिविसणुप्तिययात्रा विश्वाचित तिमय मुहानारामपजापियन रानियदिनावियापिटल नियघरुजाएविवास रहा वसापणिजियाहतहो सासुहर्षपडिवचणेणयाचणिदीगणस्यहलिविनिकय संवादियमा हिययहंसराइडलहलेसमकरहिरजडम्महवम्मुहमरवणवाणिया ताजपपवरविलासिणिमा
सदिवचित्र इथवउ सेहराउवलडपावणावर हलपचरमसुसमालपाहिजनसहरननमकर उप्पलमालावस्था ।
मेलवहिं तोमरमिनिरुत्तठकहितमसमरकरवठमाएप
चिन्ता सहिपसमाचहमादणे यकशजिणसवागणे हिमवर यरूपविलोकन
एअरुकधाषिणु काउविस्सुकरणियातमन्वहसचिन आणरसुवापदिापाम्बिसावस श्यतदिविहिविद्यालोश सलं ताबडमिणपरायल छियलवियकरवीरुजहि प्रालि एजापणिरित्तहि उन्चायविद्यारणविधालियहे पिउपिन उप्पलमालियहे महामुण्यविदिसमलुकमा बरुणदलणाबद्ध
रत्यकरणकावर
घत्ता-सखी कहती है कि आठवें दिन वह जिनभवन के आँगन में अपने हृदय में जिनवर को धारण दूसरे दिन राजा का नवतोरणक नाट्यमाली नट घर आया। और उसने रसविभ्रम हाव और भावों से सहित कर कायोत्सर्ग धारण करता है ॥९॥ अपनी कन्या से नृत्य करवाया। तब राजा ने किया है तिलक जिसके ऐसी उत्पलमाला नामक वेश्या से पूछा। कामरूपी सर्प के विष से उद्विग्न और सेठ का स्वरूप अपने मन में सोचती हुई उस मुग्धा ने राजा से जो "तब संचित किया है ध्यानरस जिसने, उसे उठाकर मैं अवश्य ले आऊँगी।" इस प्रकार उन दोनों ने कुछ कहा उसने उसे अपने मन में रख लिया। अपने घर जाकर उस वेश्या ने उस सेठ के घर दूती नियुक्त आलोचना की। इतने में आठवाँ दिन आ गया। वह धीर जहाँ अपने हाथ लम्बे किये हुए स्थित था, सखी कर दी। वह, उस सुभग (सेठ) के प्रतिवचनों से आहत हो गयी। प्रणतांग नरक से उसकी निवृत्ति की। सखी ने तुरन्त जाकर उसे उठा लाकर बालिका उत्पलमाला के लिए समर्पित कर दिया। उस मुग्धा ने काम की ने उस हंसगामिनी को समझाया कि दुर्लभ लभ्यों में प्रेम मत करो। तब दुर्लभ कामदेव के बाणों से आहत सब चेष्टाएँ की परन्तु वर स्थित रहा, जैसे वह प्रवर विलासिनी कहती है- "हे सखी, चित्त दुःसंस्थित है। वह मेरा नया-नया प्रिय हुआ है। हे सखी! तुम पंचम की तान गाओ, यदि वह (राग) प्रिय से किसी प्रकार नहीं मिलाती तो मैंने कह दिया कि मैं निश्चय से मरती हूँ। तुम मेरे परोक्ष में रोओगी।
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