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हाथ उठाकर, नेत्रों को टेढ़ाकर, लोग उसे दुर्वचन कह रहे थे। राजा 'श्रीपाल ' उसे देखकर अपने मन में सोचता है कि तिनका होना अच्छा लेकिन बन्धुरहित गरीब होना अच्छा नहीं। अफसोस है कि नागरिकों के द्वारा झगड़ा क्यों किया जाता है। बुढ़िया कहकर इसका उपहास क्यों किया जा रहा है। उस बुढ़िया स्त्री के छूने पर कुमार बुढ़िया जैसा हो गया। कुमार ने अपने अंग को अपने हाथ से छुआ, उसका शरीर जैसा पहले था, वैसा ही अब दिखाई दिया। उस अतिवृद्धा ने राजा से निवेदन किया कि मैंने बर के चरित्र को सत्यापित कर लिया। हे देव उसके शरीर में जो मैंने वृद्धरूप निवर्तित किया था, उसी प्रकार उसने उस रूप को छोड़ दिया। तब राजा । उसके खोजनेवाले भेजे। वन में जाते हुए 'कुबेर श्री' के बेटे 'श्रीपाल ' ने
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सिंहों, सर्पों से पूरित हैं दिशापथ जिसके तथा जिसमें चारों दिशाएँ मिल रही हैं. ऐसे चतुष्पथ में सोलह महाबलशाली सुभट देखे और अत्यन्त गोल सोलह पत्थर देखे ।
घत्ता - उन लोगों ने हाथ जोड़कर आगे बैठकर अत्यन्त मधुरवाणी में कुमार से कहा कि हे कुमार! आप क्यों जाते हैं, इन गोल पत्थरों को रख दीजिए ।। १९ ।।
अन्यथा हे पथिक तुम जा नहीं सकते।
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