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कोटयालप्रतिमछने भरणकार।
गिजपाणुपाणहरण हसंपाजकिमउमरणा/घनाताचंडालेंलासि अहं निसुगहिकमुडविलसियन जैसंसारएफ्तठमनियदेहेंबरठ।
देहातगणनाललनिन राणाकवरसिरिसबनशाहवखाम गामधारमण स्ववियसायरविमिजण गुरुयतेसारिसमरुगिरिहा एकजेवधरकुवेरसिरिहे अळलहताहत सघरे णिवकरिवरितका लडसरे वणरामवसरणजिणदेवझणि कायविनायनमन्त्रिसणि।
वलविडहिंसविरनिजिन जाति सणियउपहेदिषुपट अविसहरमासुणमहिलसरगयवाललमहि व वालहोदिसकरिकवलणगिन्हश्यापापिनी तारापहिउववरणिका
दस्तीत्तवस्मरणक
विरप्रियग्रासपने पलपिंड्दरिमाविमन तणपियाकरिखरुसावियत खणुनधि
राजावरदापन। पदलिय सोहळंदणपडिवियनाघवाचारडमलवारता अखाचमवार श्मश्वविद्याणिमणिपणासम्माणि जात अणुणिवतसिविदिषुवत सहिपाश्याणदया अवस्थवणाराममहो जश्यामयोसमि मर
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तुमने कहा-हे चण्डाल, प्राणों का हरण करनेवाले मरण को मैं क्यों नहीं पहुँचाया गया?
घत्ता-तब चण्डाल ने कहा-दुर्विलसित कर्म को सुनो कि जो मैंने संसार में पाया है और अपने शरीर से भोगा है ॥७॥
अपने घर में रहे थे तब राजा का श्रेष्ठ हाथी सरोवर में क्रीड़ा कर रहा था। वन में समवसरण में जिनवर की ध्वनि सुनकर वह शीघ्र गुणी हो गया। उसने हिंसा से निवृत्ति का सहारा ले लिया। जीव देखकर, वह धीरे-धीरे पग रखता, अविशुद्ध कौर की वह इच्छा नहीं करता। तब महावत राजा से कहता है कि प्राणप्रिय गज कौर नहीं खाता। तब राजा ने कुबेरप्रिय से कहा। उसने उसे मांस का पिण्ड दिखाया। उत्तम विचारवाला गज उसे देखता तक नहीं। फिर उसे खूब अन्न दिया गया, तो उस गजराज ने उसे स्वीकार कर लिया।
घत्ता-वारण (गज) दुर्जय का निवारण करनेवाला और अणुव्रतों का धारण करनेवाला हो गया है, इस प्रकार उसे बुद्धिमान् जाना, और सेठ का प्राण से भी अधिक सम्मान किया॥८॥
यहाँ गुणपाल नाम का राजा था। उसकी रानी कुबेर श्री और सत्यवती थी। पृथुधी और वसु नामक धीर मनवाले उसके दो भाई थे। कुबेर श्री का एक ही भाई था जो गुरत्व में सुमेरु पर्वत के समान था। जब वे
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