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श्रीपालपासि
संचामचरणे तपहरासपणदुद्दतं निहियमनिशाणय एकविद्याधरीरा
वहते। पंच निवसईकाणानियच्छविनपिनमाजरा। अलसहियाणित अपमृदिलवपसायंतियासिख़िाला
यंयुमोदतियानजिणाद्धपश्तवियम्झंगपEXY अाझा
मुक्षिणादहोमछएसिंगई लालपरिणितरिचंडहिं
अवरुंडहिदाहर्दिलश्रवटि सासरवहन विसुरवाय नाकामारखण्डोयाटिमानामविकमारिसंघाश्याररकसहविधिकहविनमाय निवडाह तित्रणंगलुहावसहिदकलविहां सवरेदयसारंगवलोलखुदयहाकेन्वयणुनिहाल शतहिंअवसरेगश्मलच्छवितरूणिम वाग्छदाधणावश्हरिपिछाइमरणोपासानबिझ्या सयामनुसादाश्सश्यासरसालावतासुयश्याविद्यामवणकवमाणीवनामिमा जंवल्ल
मडाचवलाईलाजकमावनकम्मरखाडभातदोसपाकागयासासावाथसासमुहमपाण। सहसेविदा कामगहें विचरा बुकश्सूनसुद्धकहोकताअचलानिजियमंदिदरहो। साकहसवेश्मरुनरवरही सिरिसिहरहाचंठजोयणसहिखाउस्त्रक्रिमडिन्ध्यहिणणि इन्ध यवनाहिंचाही मेरसमाजाश्वेदविहेवल्लंडवरुायसणिदेठतहानुपमतमानणोणेपिपयुद्ध
ॐ श्री दिन मन्दिरमा
हमें चुराकर ले आया और खोटे आशयवाले उस दुर्दान्त ने मन में क्रोध करते हुए हमें यहाँ रख दिया। प्रकार बाघ को गन्ध पाकर हरिणियाँ चली जाती हैं। दूसरी ने एक प्रासाद बनाया। उसमें सोने का पलंग अत्यन्त
घत्ताहम लोग राजकुमारियाँ होकर भी तालपत्रों से अपने स्तन को ढंकती हैं, और अपने मन में सन्ताप शोभित था। श्रीपाल के कानों में सरस आलाप आने लगा और श्रीपाल के नेत्रयुगल मछली की भाँति घूमने करते हुए राजा श्रीपाल का रास्ता देख रही हैं ॥१०॥
लगे। जैसे ही उस कन्या ने प्रिय का आलिंगन किया वैसे ही उसका कन्याव्रत खत्म हो गया। इस दोष के ११
कारण विद्या नष्ट होकर चली गयी। और वह चन्द्रमुखी अपने को दोष देती हुई कामग्रह से विवर्ण हो गयी। तुम्हीं मेरे स्वामी हो, क्योंकि तुमने हमारे अंगों को सन्तप्त किया है। नहीं तो क्या स्वामी के सिर पर सुन्दर कुमार ने पूछा कि तुम कौन हो? सींग होगा! हे स्वामी ! इस गृहिणी को लो और शत्रुओं के लिए प्रचण्ड अपनी भुजाओं से उसका आलिंगन घत्ता-अचलता में महीधर को जीतनेवाले नर श्रेष्ठ श्रीपाल से वह अपना वृत्तान्त कहती है-श्रीशिखर करो। तब वह सुभग कहता है कि यद्यपि कन्यारत्न सुन्दर है फिर भी बिना दिये हुए वह मेरा नहीं हो सकता। से चार सौ योजन दूर और ध्वजों से मण्डित रलपुर नगर है ॥११॥ एक और कुमारी वहाँ आयी। राक्षसी के रूप में जो कहीं भी नहीं समा पा रही थी। कामदेव से आक्रान्त
१२ उसके निकट आती हुई वह (कामदेव) के पाँचों बाणों से उरस्थल में विद्ध हुई भील से आहत हरिणी की वहाँ पर स्तनितवेग नाम का राजा है, जो ज्योतिवेगा देवी का प्रिय पति है। अशनिवेग उसका उद्दण्ड तरह चंचल थी और उस सुभग का मुख देख रही थी। उस अवसर पर वे छहों तरुणियाँ चली गयीं जिस प्रमादी पुत्र था। उसने तुम्हें
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