Book Title: Adi Purana
Author(s): Pushpadant, 
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 627
________________ श्रसणिवेशविद्या इंदादिलठ बांसदोतणियदिणिपियतडिया पेसिमपू धरित्रापणीवह निमईसमागमा विज्ञानहिकिमुठसंचियूसिल निवीय पदाएकऊयम गुखयालगिरिखायलाइरहोजाश्वसिमरसे किरपश्च श्वासकथन। पमिनिसाझवसीमवरहजेहदवाहक दवदनाश दबिडे देसोहनसिकमध्ममिठा महरुमल्लविउहंउलय सिनायकवारजकरुकरेढायाहपकवारजश्सङ्कवा श्रीपालविद्या लोयहि सोजाबियफलमांजगर रवचतुनिषेध लहठाततइशासितणनिसिहठमकविणयंपारडमडकबाजज्ञा पश्दतिमिलविणुबंधवा तोमिरिणतोचठवजटिकामासाइस पडलाधितासागटाजवणारयणराँसासश्ताहमाथिब झरहे मुठसाणामनियंपलस्यलझमदिडईसमियरंगिहउलश घनानासासजलणजालिनदिसयायसहातपसणिवाससया जहिनिवसथिरुवरुजित्तमहि तदिपसिलमयणवडाअसहिी रासायषिसहयनहि। INS यहाँ लाकर डाल दिया। मैं उसको प्रिय बहन विद्युद्वेगा हूँ। उसके द्वारा भेजी गयी मैं तुम्हें देखने आयी हूँ लज्जित हूँ।" तब वह वेग से रत्नपुर चली गयी। और शत्रुओं को मारनेवाले अपने भाई से कहती है कि कि तुम जीवित हो या आकाश से पहाड़ में चट्टान पर गिरकर मर गये। यह कहती है कि मैंने रोषपूर्वक वह आदमी मर गया। मैंने मांस खण्डों को खोजते हुए गिद्धों के झुण्ड को वहाँ घूमते हुए देखा है। दूर से तुम्हें देखा कि जबतक मैं तुम्हें निशाचर रूप में मारूँ, तबतक मैं कामदेव के बाणों से आहत हो उठी। घत्ता-नि:श्वास की ज्वालाओं से दिशाओं को प्रज्वलित करनेवाली अशनिवेग की बहन वियोग को (इन्द्र-चन्द्र-नागेन्द्र को विखण्डित करनेवाले बाण से) मैं सौभाग्य की भीख माँगती हूँ। वह मुझे दो। ईर्ष्या नहीं सहती हुई, अपनी सखी मदनपताका को वहाँ भेजती है कि जहाँ पृथ्वी को जीतनेवाला वह स्थिर वर छोड़कर मैं आपकी शरण में हूँ। एकबार यदि तुम मेरा हाथ अपने हाथ में ले लो, एकबार यदि मेरा मुँह निवास कर रहा था॥१२॥ देख लो, तो मैं अपने जीवन का फल संसार में पा जाऊँगी। तब उस कुमार ने उसके कहे हुए का निषेध किया और कहा-"यदि तुम्हारे भाईलोग एकत्रित होकर बड़ा उत्सव प्रारम्भ करके विनयपूर्वक तुम्हें देते हैं तो मैं विवाह (ग्रहण) करूँगा। यह मैं निश्चयपूर्वक कहता हूँ। तुम्हारे इस कन्या-सुलभ स्वभाव से मैं उसने वहाँ जाकर उस सुभग से प्रार्थना की कि १३ sain Education international For Private & Personal use only www.jainelibrary.org

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