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जश्केवलजेंदिहक्कदिहिहहरजेंदिसम्ाश्यखिरजेंदिडेंनवसमुसंपजरजेंदिभ्रष्य उपरुणजजेंदिहंडनरंगणासशजेंदिहेजगुसयलविदाससोदिहडकम्मनिवारला देवदेवअरहवनडाल थानविलकरमणपसिह राणवालगरुहेपारहठाधना उजमाना। वयवसूतियात्रुङनिरलकारविहिययहरु जिणनिमियनराजहितपाइहतिङ्गऋणेक इलेनियनियमाझ्यावदिविजिणुराणहिंविसिहनसहमड्डये
मारुउचइहंगतातहिंसमन्त्रनखेमराणा श्राहासशसिर जोश मकहाश्हसोगरेसमुष्परमाणन अणिलवेवणामखगराणन पिटाकतवश्यामतहोगहिणिस्यसोयवसायजलवाहिणिका
लश्रीपालुन हाजिनिघणननणयहेवरु छिनत्तणकोविजोऽमरु गान्धरियम् । जममुहलासेंर्तिजापविजंपियनजईसेंजिणाय विदडतिसुनिविद्य। हासिबछडाजणरचणकवादहोसश्साघम्हसरसह वरमा हरवहसरुवपमईसजोमडरायणनिवश्या नखांडेय वहिंसंसासिठानलं विकमारुम्बाला महटास्तलिणण्हाठविक्कमतिमासायहोउ ३६
सिबकटचैत्य,
जिसको देखने से सम्यक्त्व प्राप्त हो जाता है। जिसको देखने से उपशम भाव प्राप्त होता है। स्व और पर
१६ का विवेक होता है। जिसको देखने से दुर्गति का नाश होता है। जिसको देखने से समग्र संसार दिखाई देता इस प्रकार विशिष्ट गुणों से परम जिनेन्द्र की वन्दना कर वह कुमार रंगमण्डप में बैठ गया। तब एक है। ऐसे उन दुष्कर्मों का निवारण करनेवाले देवों के देव आदरणीय अनन्त भगवान् को देखा और कवि- विद्याधर पुरुष वहाँ आया। और अपने दोनों हाथ सिर से लगाते हुए बोला-इस भोगपुरी नगरी में उन्नत मार्ग में प्रसिद्ध स्तोत्र व्रत को 'गुणपाल' के बेटे 'श्रीपाल' ने प्रारम्भ किया।
मानवाला' अनिलवेग' नाम का विद्याधर राजा है। उसकी कान्तिवती नाम की प्रिय गृहिणी है। उसकी भोगवती पत्ता-आप माँ-बाप हैं। आप शान्ति करनेवाले हैं, आप अलंकारों से रहित हृदय को धारण करनेवाले नाम की लड़की है। राजा ने योगीश्वर से पूछा कि इस प्रणय-पुत्री का वर कौन होगा ? जो प्रगाढ़ धारण हैं । हे जिनेन्द्र ! जिन परमाणुओं से तुम्हारे शरीर की रचना हुई है वे परमाणु तीनों लोकों में उतने ही थे॥१५॥ किये गये संयम में धुरन्धर हैं ऐसे योगीश्वर ने विचार कर कहा कि-जिसके आने पर अच्छी तरह लगे हुए
सिद्धकूट 'जिन-भवन' के किवाड़ खुल जायेंगे वह कामदेव के बाणों को धारण करनेवाली स्वरूप में प्रसिद्ध तुम्हारी कन्या का बर होगा। राजा के द्वारा निवेदित मैंने यहाँ देखते हुए-हे राजन् ! मैंने तुम्हें देखा। नहीं चाहते हुए भी उसने कुमार को उठा लिया और वह नभचर शीघ्र आकाशमार्ग से उड़ा।
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