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विद्याभर
जिससे प्रतिदिन आनेवाली रतिरसरूपी घोड़ियाँ इन मनुष्यनियों के द्वारा यह ग्रहण न कर लिया जाये इस प्रकार उस प्रिय को उस दुर्ग्राह्य घर में रखकर आज्ञा लेकर वह प्रणयिनी चली गयी। अरुण / लाल कपड़े से ढंके नाना रत्नों से चमकते हुए सिद्धकूट जिनालय के समीप धरतीतल पर जैसे ही बैठा, वैसे ही अपने शरीर हुए उसे मांस का पिण्ड समझकर तीखी चोंचवाला भेरुण्ड पक्षी राजा को ले गया। विशाल आकाशतल से को हिलाकर राजा श्रीपाल उठा। वह चंचल पक्षी डरकर आकाश में उड़ गया। कम्बल उसके पैरों के नख उसके कर-कमल से अँगूठी गिर गयी।
से लगा हुआ चला गया। धरती पर पड़े हुए और मदनवती का इच्छित समझकर अनुचरों ने उसे देखा। यहाँ पत्ता-आदर्श पुरुष के नाम को अपनी गोद में धारण करनेवाली, दुःसह वियोग की आग के सन्ताप पर इस श्रीपाल ने भी दुष्कृत लाखों पापों और दुखों का नाश करनेवाले जैन मन्दिर को देखा। स्तुति करते को दूर करनेवाली, उसे रक्षा करनेवाले अनुचरों ने घर आकर निर्मल पवित्र बप्पिला को सौंप दिया।॥१४॥ हुए. दुर्नय को नाश करनेवाले दृढ़ वज्र के किवाड़ खुल गये। जिसको देखने से संचित कुदृष्टि पाप नष्ट हो
जाता है। जिसको देखने से केवलज्ञान उत्पन्न हो जाता है।
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