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विद्यावरीयांचया
गदिनुहोसकूलश्यामपिययनुवारस घोलव्यापार शलयासित्राज्ञा
लणमाणिहारठ तासंचलिउपंचवमारिख गयहोपासणार वाणियारिटान केदप्येसजिनमुक्तताउतासुत्रासप्पन
दुकाउ सासिडसधवलिमवयपाहिं किंजोयहोत्रहहदि EVERESमयाहिं किमईयासमामाणिवह श्रासिकालेकिन
यदिइनेनिमुणेप्यिाविहसविधिहए दिमघडताजा Hosunny
हकणिहएघाउरकलचश्मडिहलगोदयायापार विदेसळोदयसीहारेसहश्नरखालमिटलछोक्तएलपिहाण ठेससरकतईलहा। रीसमवमाययगरचारामयणकतिमयावश्छमारिदि अनवजहहंजणमणहारिहि अवा विविमलवमसियछडी असणिवयखमरिदिहा अरदिसड़उबवणेकालताकाथुनमाया पसंतामग्निउत्तणताउनउदिसूठ सन्जरकोपरिणभकामनु सजिणपरिसिणापिकतो हिरावडिंभरवश्काई विवाह गहिणीउहासतिपिसकिद बदमुतिडसिरिवालहोचकिहे मुख अटाईमग्नश्तडियट पिउवमोणनिरुत्तरुजायल चोरिदिआणिमानिकरण जननर्सिंगर
नाम का राजा हो। लो. तुम्हारा प्रियतम आ गया और अपने स्तनों, मणि हारों को घुमाओ। तब पाँचों कुमारियों चली, मानो हाथी के पास उसकी हथिनियाँ जा रही हों, मानो कामदेव ने अपनी भल्लिकाएँ छोड़ी हों, वे उस कुमार के पास पहुँची। उस भद्र ने कहा-आकाश को धवलित करनेवाले और आधे-आधे नेत्रों से आप क्यों देख रही हैं? मेरे पास आकर क्यों बैठी ? लगता है कि कहीं पर आप लोगों को मैंने देखा है। यह सुनकर दीठ बड़ी कन्या ने धृष्टता से जवाब दिया
पत्ता-पुष्कलावती भूमि पर अच्छे गोधनवाले दुर्योधन नामक प्रसिद्ध देश के सिन्धुपुर नगर में लक्ष्मी नाम की अपनी पत्नी से राजा नरपाल ऐसा शोभित था मानो विष्णु हो॥९॥
मैं उसकी रतिकान्ता से छोटी कन्या हूँ। इनमें बड़ी जयदत्ता है। मदनकान्ता और मदनावती, जन-मन के लिए सुन्दर कुमारी जयावती जेठी है और भी छठी सखी विमला है जिसे हमारे साथ उपवन में क्रीड़ा करते हुए अशनिवेग विद्याधर ने देख लिया। उसकी कामुक वृत्ति स्नेह से भंग हो गयी। उसने कन्या को माँगा, पिता ने इनकार कर दिया। उसने मुनि से पूछा कि कन्या से विवाह कौन करेगा? पृथुबोध मुनि ने पिता से कहा कि हे राजन् ! इस समय विवाह से क्या ? तुम्हारी पुत्री बाणयुक्त श्रीपाल चक्रवर्ती की गृहिणी हो गयी है। फिर अशनिवेग ने हम लोगों को माँगा, किन्तु पिता के वचन से वह निरुत्तर हो गया। तब जलद के शिखर के समान अपने पैर को चलानेवाला वह निष्करुण
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