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णाविमंतिदिजजिजेहन कुजण्यासिनतंतिहतेहतरछना परिश्चंचविलंमध्यवशंन्यास। श्रीपालप्रतिवादी
खडकवडमधाबहिंदावहितपदतिहा परवनिहालदिवसिसिहाशापखयेपचरकमिरवाना कथयनिचररको
नमश्चापिदणदणुदेवय सुटणमराउनोनचंता जणू नवरससलिलसिचती एखादानसमागयधरवडाद होसिहोसिएयहवस नवाश्मदस सहजा नउपसे सरपुनिडाजी सादंडवसेंदिपईवयाहयामंदि रंपसलाई यमरेसहिमजोलूजपणियाएपसि
उहकारातहोवणेचल्लियविन्तिविजणग्नश्कर सरतजासजगताप्रणिचिउताहिंधारूद नरवाञ्चल त्यादृढ श्रावणमग्निसासिरिपालेंदि लधालपिणुधवालीघता सोतहिंकदरपरिणाममडिल सहसाऊमारुदलचडिठ प्रासपना सेमामवलिलहरिहरगंपिङ्करस्वालिनागवाहपवादजलालिमायणई हाहोरडमलंसहसाणदंतु रिसरंगबर्दसणुजाखल माहिवाश्मासमाउसमादा हविषमसामनबिर्मगठणपक्काशनपडिनाव हंगम येकेविर्णदणुसोलकत्तठ सयलुविपरियादिहुलवंतला हाहाकारुकरंतरदेविएडचिदमति पर
मन्त्रियों ने जिस प्रकार जैसा देखा था, उस काम को उन्होंने आज प्रकाशित किया।
पर वे दोनों ही चल दिये और जो सज्जन थे वे उनका अनुसरण करने लगे। इतने में उन्होंने चंचल घोड़े घना-ध्वज-पटवाले, गाँवों, नगरों, खेड़ों और कब्बड़ गाँवों में जा-जाकर इस कन्या को उस प्रकार पर बैठ हुए एक अप्रसिद्ध आदमी को देखा, श्रीपाल ने उस घोड़े को माँगा, अश्वपाल ने उसे धन लेकर दे नचाओ और दिखाओ जिससे इसका वर शीघ्र देख ले॥३॥
दिया।
पत्ता-वहाँ पर वह कुमार अपने किये हुए कर्म के परिणाम से प्रबंचित हुआ। जैसे ही कुमार घोड़े प्रत्यक्ष, बिना किसी बाधा के उसे देखो-देखो। तब एक नगर से दूसरे नगर में नाचती हुई और नौरसरूपी पर चढ़ा, सेना के बीच में से जाता हुआ वह 'अश्व' दूर जाकर एकदम ओझल हो गया ॥४॥ जल से लोगों को सींचती हुई इस कन्या को लाया हूँ-जो मानो वन-देवता की तरह है। इस समय इस नगर में आया हूँ। तुम्हें मैंने देख लिया है, तुम इस कन्या के वर हो गये। और जो उस मुग्धा की सुन्दर आँखोंवाली आँसुओं के प्रवाह-जल से गीली आँखोंवाले, स्वजनों के हाहाकार करते हुए भी वह घोड़ा शीघ्र अदृश्य सहेली नृत्य करती है वह दूसरी नटराज की पुत्री है। तब उस युवेश ने उन लोगों के लिए वस्त्र, आभरण हो गया। राजा वसुपाल माता के समीप आया, इष्ट-वियोग के शोक से सन्तप्त शरीरवाला वह इस प्रकार और प्रशस्त घर दिये। इसी बीच में सुधीजनों को सुख देनेवाला माता के द्वारा हकारा आया। उसके कहने गिर पड़ा मानो पंखों से रहित पक्षी गिर पड़ा हो।
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