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वसुधालु श्रीपालुराजा अन्य मागतः तत्र नृत्य श्रवलेोकयतः
नव चरणे सुर लोपेतादिसगिदिउवणे तो पण उपारमिवपाणसिरियाल | विमिविनामि विनर वर जइाजत हैं। तितामणहर तंनिम्रपणे विक्रमारें तुनठे देवदेवमई विभिरुन्चना नवेमेण सरल सोमाली पहडी नडम हेली, तहिश्रवसरेसस कामेंटो माजावर संरमाणुपलोइट दिल्लाह उनावी बंधणु परिलमंतिपयलाईक पियत करहरुपा सेठ पवियल कमला दढबंधु दिविलुलाई सुसिय वमपुखकिखक रुसा सइ ताकं श्यमुहय होसीम रकल वर विसयसम्म रमाउदधूणादेरमा तहिंसिरि डरेली हरु नरवई तहोमुहका रिणिधारिणि अयाव इनसाइड हियमहिमनिब्र्वचे हिनइवइनवेदिन रिर्देवदपदम डम के अहि इसव शिंदे पुरिस वेसनी आई जोसो शिहिजे। इणुमाइ संनिमुपविमडगामणवायण दिमाग साडप्यार
धत्ता - जगपाल राजा के तपश्चरण के कारण लोगों ने उस सुर (यक्ष) को वन में स्थापित किया था। उस यक्ष के आगे मनुष्यों का जोड़ा नृत्य कर रहा था। राजा वसुपाल कहता है कि हे श्रीपाल ! सुनो ॥ २ ॥
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यदि नर और नारी दोनों ही, नर नर होकर और नारी नारी होकर नाचते तो सुन्दर होता ।
यह सुनकर कुमार श्रीपाल ने कहा कि हे देव-देव! मैंने निश्चित रूप से जान लिया है कि यह दूसरी सरल और सुकुमार महिला है, जो मनुष्य रूप में नाच रही है। उस अवसर पर काम ने अपना तीर छोड़ा और मायावी पुरुष ने सुन्दर कुमार को देखा उसकी नींवी की गाँठ ढीली पड़ गयो, नेत्र घूमने लगे और
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मन काँप उठा, ओठ फड़क गये, पसीना छूटने लगा, कसकर बँधा हुआ केशपाश भी छूट गया, मुख सूखने लगा और वह लड़खड़ाते शब्दों में बोलने लगी। तब कंचुकी उस सहृदय से कहता है कि पुष्कलावती देश में सुन्दर प्रासादोंवाला रम्यक नाम का देश है जो धन-समूह से रमणीय है। श्रीपुर नगर में उसका राजा लक्ष्मीधर हैं, उसकी शुभ करनेवाली जयावती रानी है. उसकी आदरणीय 'यशोवती' नाम की लड़की थी। राजाओं में श्रेष्ठ उस राजा ने जगतपति मुनि को प्रणाम करके पूछा। जिन्होंने कामदेव के दर्परूपी वृक्ष की जड़ों को नष्ट कर दिया है, ऐसे इन्द्रभूति मुनीन्द्र ने कहा था- जो इस कन्या को पुरुषरूप में नाचते हुए पहचान लेगा. वही इस कन्या के यौवन का आनन्द लेगा। यह सुनकर राजा ने मुझे रसभाव उत्पन्न करनेवाले गायन और वादन की शिक्षा दिलायी।
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